। २०..] गोरा युवक लोग गिरफ्तार होने के मयसे भाग गये हैं। उन भगोड़ॉकी खोजका बहाना करके पुलिस अब भी गाँवको तङ्ग कर रही है। नहीं कह सकते कंब इस संकटसे हम लोगोंका छुटकारा होगा। गोरा उठना नहीं चाहता था। उधर प्यासके मारे रमापतिके प्राण निकले जाते थे। नाईका इतिहास खतम होते न होते उसने पूछा-यहाँ से हिन्दुओंका गाँव कितनी दूर है ! नाई-करीब तीन मील पर जो नील कोठी कचहरी है, वहाँका तहसीलदार एक कायस्थ है। नाम है मङ्गलप्रसाद । गोराने पूछा-स्वभाव कैसा है ! नाई-साक्षात् यमदूत ही कहना चाहिये । इतना बड़ा निर्दय और चालाक आदमी कहीं देखने में नहीं आया। दारोगाको वह कई दिनोंसे अपने यहाँ टिकाये हुए है; उसका कुल खर्च हमी लोगों से वसूल करेगा। इसमें वह कुछ मुनाफा भी मारेगा। रमापति-गोरा, अव चलिये। मैं तो मारे भूख-प्यासके मरा जाता हूँ। अब मुझसे नहीं रहा जाता । विशेष कर जव नाईन मुसलमानके लड़केको कुएँ के पास ले जाकर बड़े में पानी भर-भरकर उसे नहलाने लगी तब रमापतिके मन में अत्यन्त क्रोध हुआ, और उस घरमें बैठना उसके लिए कठिन हो गया। चलते समय गोराने नाई से पूछा- इस उपद्रवमें जो तुम अब तक यहाँ टिके हो, सो क्या और कहीं तुम्हारे कुटुम्बी लोग नही है ? नाई-मैं बहुत दिनोंसे यहां हूँ, इन सबोंके ऊपर मेरी ममता बढ़ गई है, मैं हिन्दू नाई हूँ ! मैं खेती नहीं करता, मेरे जोत जमा 'कुछ नहीं हैं इसी लिए कोठी के अमले मुझसे कुछ कह नहीं सकते। आजकल इस गांवमें एक भी पुरुष नहीं । सभी जहाँ तहाँ भाग गये हैं। अगर मैं भी यहाँ से चला जाऊँगा तो स्त्रियां डर से ही मर जायँगी। गोराने कहा- अच्छा मैं वहाँ से खा पीकर फिर आऊँगा। दुःसह भूख प्यासके समय रमापति कोठीके साथ दङ्गा-फसादके
पृष्ठ:गोरा.pdf/२००
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२०० ]
गोरा