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गोरा

। १७५ सुचरिताने अधीरता भरे स्वरमें कहा-तुम जानो-मैं पीछे से आऊँगी। } सुचरिताने बाहरके कमरेमें आकर देखा--विनय सतीशके साथ गप शप कर रहे हैं। सुचरिताने कहा-बाबूजी धूमने गये हैं, अभी श्रावेंगे । मां आप लोगोंके उस अभिनयकी कविता कण्ठस्थ करानेके लिए लावण्य और लीलाको लेकर माटर साहबके यहां गई है । ललिता किसी तरह जानेको राजी नहीं हुई। वे कह गई हैं कि आप पावें तो आपको बिठा लिया जाय–अाज अापकी परीक्षा होगी। विनय ने पूछा क्या आप इसमें नहीं है ? सुचरिता-सव अभिनय करनेवाले हों तो संसार में दर्शक कौन होगा। वरदासुन्दरी सुचरिता को इन कामोंमें यथासम्भव बनाकर चलती भी । इसीसे नाटकीय गुण दिखाने के लिए इस दफे भी उससे कुछ नहीं कहा गया। और दिन ये दोनों सुचरिता और विनय जब एक जगह बैठते थे, तब खूब गप-शप होती थी। श्राज दोनों ओर ऐसा लिन है कि किसी तरह वात जमने न पाई। सुचरिता यह प्रतिज्ञा करके आई थी कि गोरा की बात न चलाऊँगी विनय भी ललिताकी बातसे चिढ़कर गोराको चर्चा न चला सकता था । विनय के ललिता ही क्यों, इस घर के प्रायः सभी लोग गोराका अनुयायी समझते हैं, यह सोचकर विनय गोरा के विषय में कोई बात न करना चाहता था। इसी समय वरदासुन्दरी श्राकर जब अभिनय की तालीम देने के लिये विनयं को बुलाकर दूसरे कमरे में ले गई तब कुछ ही देर बाद, अकस्मात् वे फूल टेबल पर से गायब हो गये। उस रात में ललिता भी वरदासुन्दरीके अभिनय के अखाड़े में दिखाई न दी; और सुचरिता