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गोरा

गोग [१५३ न था! परन्तु जितना ही समय बीतता जाता है उतने ही लोग नौकरीको भूषण समझते जा रहें हैं और आजकलके डिपटी वाबूके सामने उनके देश का आदमी क्रमशः कुत्ता-बिल्ली होता जा रहा है। किन्तु इस पकार पदकी उन्नति होते होते जो केवल उनकी अवनति हो रही है इस बातका कभी उनके मनमें अनुभव तक नहीं होता । लोग दूसरे के कन्वे पर भार. रखकर अपने घरके लोगोंको तुच्छ समझेंगे और तुच्छ जानकर उनके प्रति अविचार करने को बाध्य होंगे। इससे देशका कोई कल्याण नहीं हो सकता |--यह कहकर गोराने टेबल पर हाथ पटका जिसस चिराग हिल गया । यदि कुछ जारसे और हाथ पटना जाता तो चिराग जरूर. लुढ़क जाता। विनयने कहा-गोरा यह टेबल गवर्नमेंट की नहीं और यह चिराग भी परेश बाबू का ही है। यह बुनकर गोरा ठहाका मार कर हँस पड़ा । उसकी प्रवल हात्यध्वनिसे सारा मकान मूंज खठा । दिल्लगी की बात सुनकर गोरा लड़के की तरह ऐसे जोर हंस उठा, इससे सुचरिता को आश्चर्य हुआ और उसके मन में एक विशेष प्राह्लाद हुआ । जो लोग बड़ी बड़ी बातें सोचते हैं वे जी खोलकर खूब हंस भी सकते है यह बात मानों वह न जानती थी। गोरा ने उस दिन बहुत वाते की ? सुचरिता यद्यपि चुप थी, किन्तु उसकेमुंहके भावसे गोरा ने एक ऐसी तृप्ति पाई कि उत्साहसे उसका हृदय फूल उठा । अन्त में मानो उसने सुचरिताकी ओर लक्ष्य करके कहा-एक बात याद रखने की है। यदि हम लोगों का ऐसा गलत संस्कार हो कि जब अंगरेज प्रबल हो उठे हैं तब हम लोग भी ठीक उन्हींकी तरह न हों तो कदापि प्रवलता प्राप्त न कर सकेंगे; तो यह भूल है। हम लोग उनका अनुकरण करते करते और भी बरबाद हो जायेंगे। न हिन्दू रहेंगे न मुसलमान । प्रबलता क्या होगी खाक ! आपसे मेरा