गोरा [१४३ पासके कमरेमें महिम थे । गोराने उच्च स्वरसे पुकारा-भाई साहब । महिम हड़बड़ा कर दौड़ आये । गोराने कहा-मैं शुरू से ही कहता आया हूँ कि शशिमुखीके साथ विनयका व्याह न होगा। महिम-हाँ, कहा तो था ! तुम्हारे सिवा और कोई ऐसी बात कह नहीं सकता । दूसरा कोई भाई होता तो मतीजी के विवाह के प्रस्तावमें पहले ही से उत्साह दिखाता । गोरा-अापने मेरे द्वारा विनयसे अनुरोध क्यों कराया ? माहम--सोचा था, उससे काम हो जायगा और कोई बात नहीं । गोराने आँखें लाल करके कहा- मैं इन सब बातोंमें नहीं रहता। विवाह की विचवानी करना मेरा काम नहीं मेरा काम कुछ और है। यह कहकर गोरा घरसे चला गया, महिम हतन्त्रुद्धि से खड़े ही रहे। इसके कुछ कहने के पहले ही विनय भी घरसे चलता हुआ । महिम कोने से हुक्का उटाकर चुपचाप बैठ गये और पीने लगे। गोराके साथ इसके पहले विनयके कई बार झगड़े हो गये है किन्तु ऐसे प्रचण्ड दावानलकी तरह झगड़ा कमी नहीं हुआ। विनय अपनी करतूत पर पहले दुखी हो उठा, किन्तु पीछे घर जाने पर उसके हृदय में बाण विधने लगा। घड़ी भरके भीतर ही मैंने गोरा को कितनी बड़ी चोट पहुँचाई है इसका स्मरण करके उसे बहुत पश्चात्ताप हुश्रा । खाना, पीना और सोना उस दिन उसे कुछ न रुचा । विशेषकर इस घटनामें गोराको दोष देना नितान्त अनुचित है, यही उसका सन्तप्त करने लगा। वह अपने को बार-बार धिक्कारने लगा। दो बजे दिनको आनन्दमयी सबको खिला पिलाकर और आप भी खाकर जब सिलाई करने को बेटी थी तब अचानक विनय उसके पास अाकर बैठा । आज सवेरेको कितनी ही बातें अानन्दमबी ने महिम से सुनी थीं। भोजनके समय गोरा के मुंहका गम्भीर भाव देखकर भी वह ताड़ गई गई थी कि आज कुछ खटपट जरूर हुई है।
पृष्ठ:गोरा.pdf/१४३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
[ १४३
गोरा