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गोरा

१३८] गोरा विनय-निश्चय है। ललिता-क्या राय है ? आप जरा उसकी व्याख्या कहिये। मैं दीदी को बुला लाऊँ वह भी सुनेगी। विनय ठहाकेसे हम पड़ा । ललिता ने कहा-हंसते क्यों हैं विनय वाबू ? आपने कल सतीश से कहा था कि औरतें बाघसे डरती हैं। इसके बाद उस दिन औरतों को लेकर विनय सर्कस में गया था। केवल यही गोरा के साथ उसका सम्बन्ध ललिताको और शायद इस घर की अन्य स्त्रियों को कैसा प्रतीत हुआ है यह ख्याल भी बार-बार बिनय के मन में हलचल मचाने लगा। फिर जिस दिन विनयसे भेंट हुई उस दिन ललिता ने जैसे बहुत ही लापरवाहीके साथ कौतूहलका भाव दिखा कर प्रश्न किया—गौर बाबू से.'आपने उस दिन सर्कस जाने का जिक्र किया था ! इस प्रश्न की गहरी चोट विनय के मन पर लगी क्योंकि उसे कहना पड़ा-ना अभी तक तो नहीं किया । यह उत्तर देते समय उसके कानों की जड़ तक चेहरा तमतमा उठा, शायद शर्मके मारे । इतने में लावण्य आ गई । उसने कहा-~~-विनय बाबू चलिए न ललिताने कहा—कहाँ ? सर्कसमें क्या ! [...-बाह अाज सर्कस कहाँ है ! मैं बुलाती हूँ इसलिए, कि विनय बाबू चलकर मेरे रूमालमें चारों ओर एक किनारे की वेल पेंसिल से खींच दें-मैं उसे काढ़ लूंगी। लावण्य विनयको पकड़ ले गई। लावण्यने कहा- -::-