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गोरा

। गोरा { १२५ उसी तरह हम प्रकाश्य कर्म-क्षेत्र में खींच लाते हैं तो उनके निगूढ़ कर्म की व्यवस्था नष्ट हो जाती है, उससे समाजका स्वास्थ्य बिगड़ता है, उसकी शांति में खलल पड़ता है। समाजमें एक तरह का मतवाला मन घुस नाता है ! साधारण दृष्टिसे देखने में वह मत्तता शक्ति सी प्रतीत होती है, किन्तु असल में बह अगर शक्ति है तो विनाश करने ही की। नर और नारी दोनों समाज-शक्तिके दो पहलू है। पुरुष ही व्यक्त (देख पड़ने वाला) है किन्तु व्यक्त होने के कारण ही वह बड़ा नहीं है । नारी अव्यक्त है । इस अव्यक्त शक्ति को अगर केवल व्यक्त करने की चेष्टा की जाय, तो वह सारी पूजा को खर्च में डाल कर समाज को तेजी के साथ दिवालिया कर देनेकी ओर ले जाना होगा । इसी कारण तो कहता हूँ कि हम मदं लोग अगर यज्ञ के क्षेत्रमें रहें और औरतें रहें घरके भण्डार की देखरेख में, तभी स्त्रियों के अदृश्य रहने पर भी यह मुसम्पन्न होगा। जो लोग सारी शक्तिको एक ही तरफ, एक ही जगहमें, ही एक ही तरहसे खर्च करना चाहते हैं, वे उन्मत्त हैं। विनय:- गोरा, तुमने जो कहा, उसका मैं प्रतिवाद करना नहीं चाहता–लेकिन मैं जो कुछ कह रहा था, उसका तुमने भी प्रतिवाद नहीं किया । असल बात गोरा---(बात काटकर ) देखो विनय इसके आगे अगर इस बात को लेकर अधिक बकवक की जायगी तो वह बहसका रूप धारण कर लेगी। मैं स्वीकार करता हूँ कि आजकल हाल ही में तुम औरतों के सम्बन्ध में जितना सचेत सतर्क हो उठे हो, मैं उतना नहीं हुआ । वस, तुम जो अनुभव करते हो, वही. अनुभव मुझे भी करानेकी तुम्हारी चेष्टा कभी सफल न होगी। इस कारण इस बारे में फिलहाल हम दोनों में मत भेद रह जाना ही क्यों न मान लिया जाय ? यही अच्छा होगा। गोराने बात उड़ा दो । किन्तु बीज को हवा में उड़ा देने से भी वह मिट्टी में गिरता है और मिट्टी में गिरने से मौका पाकर उसके अंकुरित होने में कोई रुकावट नहीं रह जाती। गोराने अबतक जीवन के क्षेत्र में 5