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गोरा

१२० । चाबुक जमा दिया और घोड़ों की रास ढीली कर दी। चाबुक की चोट से उसके सिर पर लोहू निकल आया । बुड्ढे ने अल्ला कहकर लम्बी साँस ली अोर जो चीजें खराब न हुई थीं, उन्हें चुनकर वह टोकरी में रखने लगा | गोरा आगे न बढ़ बिखरी हुई चीजों को बटोरकर उसकी टोकरी में रखने लगा । बूढ़े मुसलमानने सज्जन पथिक के इस व्यवहारसे अत्यन्त संकुचित होकर कहा-वाबू आप क्यों तकलीफ कर रहे हैं ? ये चीजें तो स्वराव हो गई अव ये किसी काम में न आयेंगी । गोरा भी इस कामको अनावश्यक समझता था और वह यह भी जानता था कि जिसको मदद दी जा रही है वह सकुचा जा रहा है । ठोकरी भर जाने पर गोराने उससे कहा—जो चीज नुम्हारी नुक्सान हो गई है उसका दाम तुम्हें मालिक से न मिलेगा। इसलिए मेरे घर चलो, मैं पूरा दाम देकर तुमसे ये सब चीजें मोल ले लँगा । किन्तु एक बात तुमसे कहता हूं, बिना कुछ कहे-सुने तुमने जो अपमान सह लिया! है, इसके लिए तुमको अल्ला माफ न करेगा। जो कसूरवार होगा उसीको अल्ला सजा देगा, मुझे क्यों देगा ? गोरा-जो अन्याय सहता है वह भी दोषी है। क्योंकि अन्याय सहने ही से संसार में अन्यायकी सृष्टि होती है अन्याय न सहने से कोई किसीके ऊपर अनुचित व्यवहार न कर सकेगा। मेरी बातका मतलब समझो इतना याद रक्खो कि सहिष्णुता गुण नहीं है उसे एक प्रकारका दोष ही समझो । सहनशील लोग दुष्टोंकी संख्या बढ़ाते हैं। तुम्हारे मुहम्मद साहब इस बातको जानते थे, इसीसे वे सहनशील बनकर धर्मका प्रचार नहीं करते थे। वहांसे गोराका घर पास न था, इसलिए वह बृद्ध मुसलमानकों विनय के घर ले गया । विनयकी टेबलके पास,दराज के सामने खड़े होकर उसने विनयसे कहा--रुपया निकालो। विनय-तुम इतने ब्यग्र क्यों होते हो ? बैठो, 'मैं अभी देता हूँ।' यह कहकर विनय चाभी खोजने लगा, पर चाभी न मिली। गोराने कुञ्जी