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गोरा

गोरा ! -- । लोगों से बिल्कुल ही मेल नहीं खाता। उसकी लम्बाई-चौड़ाई भी आश्चर्यजनक है। कालेज के संस्कृताध्यापक उसे रजतगिरि कहकर पुकारा करते थे। उसका रङ्ग कुछ उग्र प्रकार का गोरा है--सुनहली आमाके अभाव ने उसे भी सिगन्ध कोमल नहीं होने दिया है। वह सिर से प्रायः- छ: फुट लम्बा है। उसके हाथ चौड़े हैं दोनों हाथों की मुट्टियाँ बाध के पंजे की तरह बड़ी हैं । गले की आवाज भी ऐसी मोटी और गंभीर है कि अचानक कान मे पड़ने से मनुष्य चौंक पड़े। उसके मुख की गठन भी आवश्यकता से अधिक बड़ी और दृढ़ है । भौहें और ठोढी की हड्डी जैने दुर्गद्वार के दृढ़ अर्गल ( जंजीर ) की तरह हैं । आँखों के ऊपर भौहों की श्याम रेखाएं जैसे है ही नहीं और वहाँ पर का कपाल कानों की तरफ चौड़ा हो गया है । दोनों अोठ पतले और सदा बंद रहने वाले हैं । उनके ऊपर नाक खाँड़े की तरह मुकी हुई है । दोनों आँखें छोटी किन्तु तीक्ष्ण हैं । उसकी दृष्टि जैसे तीर के अग्न भाग की तरह अति दूर अदृश्य की ओर लक्ष्य किये हुए है, साथ ही दम भर में भी लौट आकर पास की चीज पर भी बिजली की तरह चोट कर सकती है । गोरा को देखने से सुश्री नहीं कहा जा सकता, यह सही है । लेकिन उस पर ध्यान गये विना नही रहा जा सकता । हजारों के बीच में भी आदमी की नजर उस पर अवश्य ही पड़ेगी। और, उसका मित्र विनयभूषण एक सधारण बंगाली शिक्षित नद्र पुरुष की तरह नम्र किन्तु उज्वल है । स्वभाव की सुकुमारता और बुद्धि की तीव्रताने मिल कर उसके मुखकी श्रीमें एक विशेषता उत्पन्न कर दी है। वह कालेज में वरावर ऊँचे नम्बर और स्कालरशिप पाता रहा है। गोरा पढ़ने में और उसके फलमें किसी तरह बिनय के साथ नहीं चल पाता था । असल बात यह है कि पढ़ने के विषयों में उस तरह उतना गोरा का मन ही नहीं लगता था। वह विनय की तरह न तो जल्दी समझ ही पाता था, और न याद ही रख सकता था । विनय "