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१०० ]
गोरा

-- १०० ] गोरा मैं भला बुरा कुछ समझ नहीं पाता,लेकिन यह निश्चय है. कि. इसके साथ कोई चातुरी नहीं चलेगी। किताबोंमें बहुत सी बातें पढ़ी है, और अब तक यही कहता आया हूं कि मैं सब जानता हूँ। ठीक जैसे चित्र में जल देखकर समझता था कि तैरना खूब सहज है, मगर आज जलके भीतर गिरकर दम भरमें समझ गया हूँ कि यह तो मिथ्या नहीं है। यह कहकर विनय अपने जीवनकी इस विचित्र घटनाको बड़ी धीरता मे गोराके सामने प्रकट करने लगा। वह कहने लगा-याजकल मेरे लिए दिन रातमें कुछ अन्तर नहीं है, समस्त अाकाश-मंडलमें मानो रत्ती भर जगह कहीं खाली नहीं है। 'सारा अाकाश मानों किसी एक कठिन पदार्थसे भर गया है। मधु मासमें मधुका छत्ता जैसे मधुसे भरकर फटना चाहता है, वही दशा मेरी है ! "आज सभी पदार्थ एक अपूर्व भाव से मेरे सामने प्रेतीयवान हो रहे हैं। मैं नहीं जानता था कि संसार की सभी बस्तुओंको मैं इतना यार करता हूँ, आकाश ऐसा विचित्र होता है, प्रकाश ऐसा अपूर्व होता है। रास्ते के अपरिचित पथिकका प्रभाव भी ऐसी गम्भीरता से सत्य होता है। मेरा जी चाहता है सबके लिए मैं कुछ करूँ ; मैं अपनी सम्पूर्ण शक्तिको अाकाशके सूर्यकी भांति संसारकी एक चिरस्थायी बन्तु बना डालूँ। विनय किसी व्यक्ति विशेष के प्रसंगमें यह सब बातें कह रहा है, यह स्पष्ट रूपसे समझमें नहीं आता। मानों वह किसीका नाम मुंह पर नहीं ला सकता । संकेतसे भी नाम सूचित करने में वह कुण्ठित हो पड़ता है। वह जिस मानसिक भावकी आलोचना कर रहा है इसके लिए मानों यह किसीके निकट अपने अपराधका अनुभव कर रहा है । इसे वह एक प्रकार का अन्याय और किसी के प्रति गुप्त अपमान करना समझता है किन्तु आज इस निःशब्द रात में निःस्तब्ध अाकाशमें सूनी जगहमें मिलने पास बैठकर वह इस अन्यायको किसी तरह छिपा न सका । 'अहा ! वह मुख क्या है मानो निष्कलङ्क पूर्ण चन्द्र है। उसके निर्मल प्राणोंकी अामा उसके भालकी कोमलतामें क्या ही मनोहर. भाव से . । ।