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शब्द-संपह [जहाँ पृष्ट का संकेत नहीं दिया है, वहाँ संख्या पद्य संख्या का द्योतक है।] अचई -आचमन करता है, पीता है। अमियः अमृतास८७ प्रा३ अमेहम, मैं प २६ अंवर-माकाय, ब्रह्मरंध्र । मा १६ अरध, अरघंत, अर्ध-नीचे, अबिरथा-व्यर्थ । प २२ नीचे गिरनेवाला (रेतस्) स ३५, अकल-कला रहित, निगुष निरंजन ८१; सिपु २३७ पृ. श्रा २० भरस-परस-चूना,मालिंगन करना। अकुच-मईचित, बिखरा हुमा । स९१ स २३३ अलिया बलिया-भात नाल,प्रपंच अकुलानः अजन्मा में। मगो २८ करनेवाली और बजवसी । स १०१ अष-अक्षय । स ७७ भलुणी-बिना नमक की । स २३९ अगह जो प्राय नहीं किया था अहूँठ-सादे तीन । स ४३ सकता। स २५२ अहेडै-आखेट । स २६८ प्रगम भगम्य भाभ्यास्मिक क्षेत्र । • आंवन्नियो-प्रांवना । १२० स १६ आगिला-भागेवाला, दूसरा स्पषि, अचरा-अचर, स्थिर । प ५१ प्रतिद्वंदी । स २३ अळया-इया । प३ आछे-अक्षय परममा । स ३, अजरांवर-अजर और भमर ।श्रा १५ अतीत=परमात्मा, सिद्ध योगी, · श्राडां-तिरछे । स १५८ अतिथि । स १६७ आतीत-प्रतीत, पहुँच के बाहर अदन्नी-न्यायशील । प २७ प१३ भदिसाट अरष्ट परबद्यास २२ श्रादं-आदि, मूल । स ५३ अनली-पिगला नादी । मगो ४८ आफू-अफ्रोम | स २०० अनहद-अनाहतनाद । स ५४ आभ-पानी | १७ अपूठी अफूठौ वापिस, पी, पीठ • आरण-अरण्य, जंगल । ५५ फी भोर । ग्या २९, स २३४ श्राववैमावर्तन करता है, चार अबिहड़-भखंड, जो विदोर नहीं मगता है। प३ होता। पंद्र श्राविला: =आया है। प ३४ अभाजैमी-अविभक्त सी, संपूर्ण । इकुटी विकुटी, त्रिकुटी-पानी, दूसरी, तीसरी मर्यात इना, पिंगवा भमरी-अमरोलीस १४१ सुपुम्ना नादिया । स १८० है प १२ > और