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। तन १ गोरख-यानी] २३६ आसन तजि अनत जिनि जावा । अकलपमिछया बैठा खावी ॥ कनक न पकड़े मोरी न मेलै । आई रिद्धि" की जोगी ठेलै हरचा तिणांका न सतावै जीव। सो जोगी कहिये प्रकि सीव ।। चकमक कफ नांव न धरौ। पर प्रात्मा का परला जिनि करो। अगनि न बाली धुआं न घोटौ । भिकथा कर पान ले वोटो॥ ग्वांडा विच आसरण जिनि मांडौ । मोह लगाय श्राप जिनि भांडौ।। बाई वावड़ी को मन नहिं दीजै । देषत दिष्टि काया तन छीजै ।। पंदित पढ़ि गुणि करै न आसा । देषि एकत१३ जु रहौ निराशा ॥ काहे को पढ़ि गुणि भला कहावै । जब लगि हिरदै दया न आवै ॥ जब लगि हिरदै दया न आई । तब लगि कहिये सुद्ध कसाई ॥ कनक न पकड़े सवद न वाहै । जोगी कागद कहां ते लावै१५ ॥ मेरै१६ पोथी मन मेरै ६ लेपनि, एती निज तत निसपती। यो कथंत गोरष जती। वहां चलिवे का करौ विचार । अगम अगोचर सुलप श्राकार१८॥ पदा देवरा२० औषड़ देव । तहां जोगेश्वर लाग्या२२ सेव ।। पंच चेलार3 मिलि पूरथा नाद । धरणि गगन विध भई अवाज ।। रीपक एक अषंडित चिन बाती। तहां जोगेस्वर थापना थापी॥ अगम अगोचर सकल ब्रह्म२४ । वा दीपग२५ कै२६ चरण न चंड२० । सिपा न नैन सीस नहि हाथ२८ । सो दीपग२५देख्या जती गोरखनाथ ॥ १. (५) नहीं । २. (क) जाओ "खाओ। ३. (ट) भिक्षा। ४.() अलप ५. (१) सिद्धि । ६. (क) यिएका । ७. (१) प्रत्यक्ष । ८. (ङ) धूटीऊटौ। ६. (5) श्रासन । १०. (क)जिण । ११. (घ) • । १२. (ड) दृष्टि । १३.(घ) एकांतरि । १४. (५) सुधि । १५. (घ) 'ल्यावै । सम्भतः पाठ 'लाह रहा हो। १६. (E) मेरे । १७. () एता । १८.। (घ) निद्रा अलप सुलप अहार। १६. (घ) पन्या । २०. (प) देहुरा । २१. (क) जोगेश्वर । २२, (५) लागे २३. () चेल्या । २४. (6) में यह चरण नहीं है । २५. (ड) दीपक { २६. (3) के । २७. (५) पिंड । २८. () "श्रवन न सीस नैन नहीं हाय।।