[गोरख-बानी w उतपति हिन्दू जरणां जोगी अकलि परि मुसलमांनी ते राह चीन्हों हो काजी मुलां ब्रह्मा बिस्न् महादेव मांनी १४| मांन्यां सबद चुकाया दंद। निहचै राजा भरथरी परचै गोपीचंद । निहचै नरवै भए निरदंद । परचै जोगी परमानंद ॥१५॥ , खंडन करने में लगे रहते हैं। किन्तु योगी को इस प्रकार के शास्त्रार्थ में नहीं पड़ना चाहिए। जैसे सभी नदियों का (भारत की नदियों की संख्या कहीं अइसठ और कहीं यहत्तर मानी जाती है। तीर्थ सब नदियों ही पर हैं ।) जल समुद्र ही में समाता है उसी प्रकार शिष्य का विश्वास गुरुमुख वचनों में होना चाहिए। उन्हीं वचनों का मनन-चिंतन द्वारा पाचन करके श्रात्मीकरण करने में उन्हें दत्तचित्त रहना चाहिए । जरना=जीर्ण करना, पचाना, पूर्णरूप से स्वायत्त करना जो पूर्ण विश्वास के बिना असंभव हैं ॥१३॥ उत्पत्ति से हम हिन्दू हैं, जरणां के कारण जोगी हैं और अक्ल से मुसल- मानी पीर । (जोगी हिन्दू जन समुदाय में से ही चेला मुदाया करते हैं । योग सिद्धि के लिए यह आवश्यक है कि गुरुमुख से पाये हुए ज्ञान को मनन, चिंतन और साधना के द्वारा स्वानुभव में ला सकें। मुसलमानों में जिस प्रकार पोरों का मान है, उसी प्रकार योग-मार्ग में गुरुषों का । नाथों ने तो 'पीर' शब्द को ही स्वीकार कर लिया है। उनके 'महंत' महंत नहीं, पीर कहलाते हैं । किन्तु इसका यह अभिप्राय नहीं कि वस्तुतः कोई तास्विक मुसलमानी प्रभाव उनपर पड़ा हो । ) हे मुरुलाओ और काजियों ! उस मार्ग को पहिचानो जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महादेव तक ने माना है ॥१४॥ जिसने गुरु वचनों को माना उसको दुविधा नष्ट हो गई । इसी निश्चय ने राजा भतृहरि को बनाया, उन्हें सिद्धि दी और राजा गोपीचन्द को माम- परिचय ( साक्षात्कार ) कराया। इसी निश्चय ने नरपतियों ( नरवै) को निर्द्वन्द बना दिया जिस से प्रारम-साक्षात्कार के द्वारा वे पूर्ण परमानन्द प्राप्त करने वाले योगी हो गये ।।१५॥ . १. (ग) मुसलमान; (घ) मुसलमानां । २. (ख) चीन्हत; (ग) चीन्हि हो । ३. (ग) मुसलां । ४. (ख) जो; (व) ते । ८. (ग) मान्यां; (घ) मानां । ५. चरण किसी में नहीं।
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