पंचमें गोरख-बानी] २२३ तौ स्वामी पंचतत्व तेक्या बोलिये, पचीस परकीरती ते क्या बोलिये। पंच तत्त बोलिये पृथ्वी आप तेज बाई आकास, येक येक तत्त संजुगत पंच पंच परकीरती बोलिये । प्रथम पृथ्वी प्रकीरती बोलिये अस्त१ मास २ तुचा ३ नाडी ४ रोम२५ एतो पृथ्वी को प्रकीरती बोलिये ॥१॥ दुतिये श्राप प्रकीरति वोलिये लाल. १ मूत्र २ प्रसेद ३ सुकल५४ सुनीत ५। एती आप की प्रकीरति बोलिये ॥२॥ सृतीये तेज प्रकीरति बोलिये पुह्या १ तृसा २ न्यंद्रा ३ बालकस' ४ क्रोध ५। एती तेज प्रकीरति बोलिये ॥३॥ चतुरथे बाई प्रकीरति बोलिये गाँवण १ धावण २ बलगण ३ ग्यांन ४ अगोचरि५ । एती बाई प्रकीरति बोलिये ॥ ४॥ आकास प्रकीरति बोलिये माया १ मोह २ लज्जा ३ राग ४ द्वष ५। एती पंच तत्त पचीस परकीरति का भेद बोलिये ॥ ५॥ स्वामी पृथ्वी का कौंण बरण, आप का फौंण बरण, तेज का कोण चरण, बाई का कौंण वरण, श्राकास का कौण वरण । पृथ्वी का पीत वरण, आप का सेत बरण, तेज का रक्त वरण, चाई का नील वरण, आकास का काला बरण । स्वामी पृथ्वी का कौण स्वाद, आप का कौण स्वाद, तेज का कौण स्वाद, बाई का कौण स्वाद, भाकास का कौण स्वाद । पृथ्वी का मधुर स्वाद, भाप का पारा स्वाद, तेज का तीषा स्वाद, चाई का पाटा स्वाद, आकास का मलबंधा स्वाद। तौ स्वामी पृथ्वी का कोण सुभाव, आप का कौंण सुभाव, तेज का कौंण सुभाव, बाई का कौण सुभाव, आकास का कौंण सुभाव । २. (घ) में इसके पहले 'अवधू तीन गुण ते राजस तामस सात्विग' २. (घ) रोमावली । ३. (घ) 'लाव' क्रम भी बदला है। ४. (५) प्रसेव; (5) प्रत्वेद । ५. (प) बिंदु, (ङ) शुक्र । ६. (घ) (ङ) 'पालसः। ७. (घ) मिलवला (क) मलमला।
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