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+ परिशिष्ट-१ [9]—(?) गोरष गणेस गुष्टि गणेस पूछ गोरष कहै तुम्हें स्वामी कहाँ थे प्राव्या, कहा तुम्हार नाम । अम्हें निरंतरि थै बर आव्या, जोगी अम्हारा नाम । स्वामी जोगी तो ते बोलिये जिन एता मेर मेषला रच्या । तुम्हें कौण जोगी। अम्हें निरजन जोगी अतीत गुर चेला। स्वामी ते क्यू जाणिये। रहति करि जाणिये, सबद करि प्रवाणिये। स्वामी रहित ते क्या बोलिये, सब्द ते क्या बोलिये । सब्द बोलिये सबथै बिबरजित, रहति बोलिये तूगुण रहित । स्वामी सबथै निर तर ते क्या बोलिये। सरब थै ब्यबरजित बोलिये अवधू सुछिम, त्रिगुण बोलिये सक रज तम। तौ स्वामी सुछिम ते क्या बोलिये, सत रज तम ते क्या बोलिये । सुछिम ते बोलिये अवधू दिष्टि न देषिये मुष्ट न श्रावै। सतगुन बोलिये पवन रजगुन बोलिये पानी२ । गुण बोलिये तामस रूपी। पंच तत्त पचीस परकीरती बोलिये आदम । १. (घ) में इसके वाद 'ब्रह्मांड रच्या' इतना अधिक है २. (क) पाणी। (घ) में यह पति यों है 'सतगुण विस्न रजगुण ब्रह्म तमगुण रुद्र' । १. (घ) तीन गुण पंच।