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गोरख-बानी] ऊरम बोलिये मन, धूरम बोलिये पवन, जोति बोलिये नेत्र, ज्वाला बोलिये श्रवन । चारि पाणी बोलिजै घट भीतर । ते कौंण कौंण । स्वेतरज' अंडरज२ जेरज उदबीरज | सेतरज'बोलिये हाड़, जेरज वोलिये बीरज अंडरज बोलिये नेत्र, उदबीरज बोलिये रोमावाली। चारि वाणी बोलिये घट भींतरि । ते कौंण कौंण । सहज संजम सुपाइ अतीथ। सहज बोलिये सरीर, संजम बोलिये पवन, अतीत बोलिये परम पद । महा मुद्रा महां अजाच नग्री महां जोगणी स्यंभू बोलिये। जे बांणी पाणी कौं बिचारै ते निराकार बोलिये,ॐकार मधे जोति जांणिये ऊरम धूरम जोति ज्वाला । भेदौ रवि का चारयु कला। मन करि हस्ती बिमल जल पावै । द्वै पप चीन्हें तौ सोलह कला जीवै। बारह कला सूरज, सोलह कला चंद। गुरू जिसका लषावै नहीं चेला तिसका अंध । बारह कला सूरज की, ताकौ गुण घट भींतरि व्यापै। ते कोण कौंण। चिंता, तरंग २, ड्यभ'३, माया, परग्रहण १४, परपंच, हेत, बुधि, काम, क्रोध, लोभ, दृष्टि ये१५ बारह कला सूरज की बोलिये। सेत रज...उदबीरज:स्वेदज, अंग्न जरायुज और उद्भिज । तमत संकेतक । वंकार कार । ( दोनों पाठांतर से) ड्यंभ-दम्भ । परग्रहणे =पतिग्रह, किसी से कुछ चाहना, दान लेना। १. (घ) सेरज । २. (घ) यंड रज; (घ) में 'जेरज' इससे पहले । ३. फिर 'सेरज कौंण बोलिए' इत्यादि प्रश्न । ये प्रश्न आगे प्रत्येक वस्तु के संबंध में अलग अलग दुहराये गये हैं। ४. वीर्ज । ५. (घ) च्यारि । ६. (घ) सुपाव । ७. (घ) अतीत। ८. (घ) महा उजेनी नगरी। ६. (घ) मह अजोनी सिम् । (क) 'ॐकार के स्थान पर केवल 'तम वंकार। ११. (घ) चित । १२.(घ) नंग ।१३. (घ) डिंभ। १४.(घ) पर ग्रहण । १५. (घ) इती । १६. (घ) रिज । २९ . ,