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१ गोरख-बानी] १७५ उलटै चन्द्र राह कौं' ग्रह । सूरज उलटि केत संग्रहै। ससि द्वार सूरज थिर रहै। तत्व भाण जोगेस्वर कहे ॥६॥ अर| जाता उघे गहें । द्वादस पवनां उनमन रहै। अहनिसि बाई धुनि मैं बाजै। पछिम द्वारै पवनां गाजै ॥७॥ अभिअंतरि ब्रह्म अगनि परजालै । पंच चोर ले ग्यान संभाले। जोगी अपणे घरि दिवाला दीपैता जोगीकी काया काल न छोपै.॥ हलि हलि पवनां काया गरजै । सूरा होइ१२ अभिअंतरि झूम। ग्यांन पडग ले झूमिवा द्वार। अजीत 3 जीतिबा पंच गहि सारा अष्ट परबत असाध ४ साधिबा। नव दरवाजा दिढ१५ करि वांधिवा। दसवै दरवाजे कूवी'६ सार । मैमंत हस्ती बांधिवा बार ॥१०॥ - चंद्र और सूर्य उलट कर राहु-केतु को प्रस लेते हैं। इस प्रकार वह योगी- श्वर जो तस्व ज्ञान के कारण भानु सा प्रकाशमान है, कहता है, कि चंद्र के द्वार पर सूर्य स्थिर हो जाता है, अर्थात् सूर्य और चन्द्र का मेल हो जाता है, जोहर विधा का उद्देश्य है ॥६॥ नीचे ( भीतर ) जाती हुई वायु को ऊपर लेकर अर्थात् ब्रह्मांड में ले जाकर द्वादशांगुल पवन का भायाम कर उन्मनावस्था में रहे । जय पवन सुपम्ना मार्ग में गरजती हुई प्रवेश करती है, तब रात दिन वायु से ध्वनि निकलती है धना- हत नाद सुनाई देता है ॥७॥ पंच चार-पंच ज्ञानेंद्रिय ॥८॥ भूमिबायोद्धव्यं, युद्ध करना चाहिए ॥९॥ मैमंत...बार =और मद मत्त हाथी (मन) को दरवाजे पर (अमरंध्र में) बांध देना चाहिए ॥१०॥ १. (घ) क् । २. (घ) सक्ति । ३. (घ) थिरि । ४. (घ) अरघै । ५. (घ) • उरधै । ६. (घ) धुनि । 'मैं' नहीं । ७. (घ) परजारै...समारै । ८.(घ) लै । ६. (क) आंन । १०. (घ) दिपै छिपै । ११. (क) प्रने । १२. (घ) होय । १३. (घ) अजीति । १४. (घ) असाधि । १५ (घ) द्रिद । १६. (घ) दरवाजे दसर्वे कंची १७. (घ) मैंमंता।