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[गोरख-यानी से और युसरे का दो से समर्थन होता है। 'निरंजन पुराण' भी प्रति में सेवादास फा नहीं कहा गया है किंतु यह केवल (ङ) में है और पौराणिक ढंग की रचना तो है ही। इस लिए वह परिशिष्टों में भी सम्मिलित नहीं किया गया है। 'जाती भौंरावाली' जो (क), (छ) और (ब) तीन प्रतियों में है, गोरख की रचना नहीं, गोरख की स्तुति है और गोरख की नहीं हो सकती | उसके अन्त के कुछ पद्यों में कवि मेघ का नाम आता है और अधिक संभव यह है कि वह उसी की रचना होगी- कवि कहै मेघ दीप कंवण श्रात्म टलै अधारियो । सुरता सु पह पंडित सबै बलि कोई जांणि बिचारियो । 'अवलि सिलूक' और 'काफिर बोध' जो (क) में हैं-पिछला ग्रन्थ अन्यत्र चीर का भी माना जाता है-गोरखनाथ के न होकर स्पष्ट हो रतननाथ के हैं, जैसा स्वयं इन रचनाओं से पता चलता है। और इसी लिए जोगेसुरी बानो के दूसरे भाग में रक्खे गये हैं । मूल 'गर्भावली' और 'खाणी वाणी ग्रन्थ' भी जो केवल (छ) में हैं 'निरंजन पुराण' की भांति पौराणिक रचनाएँ हैं, इस लिए वे सर्वथा छोड़ दिये गये हैं । 'गोरख वचन' भाषा की दृष्टि से आधुनिक है और केवल (छ) में है इस लिए छोड़ दिया गया है । 'गोरख संत' संस्कृत गोरख- शतक का हिंदी अनुवाद और गोरख कृत नहीं । शेष रचनाओं में से जिनके द्वारा गोरख या उनके मत पर कुछ प्रकाश पड़ता दिखाई दिया है; उनको मैंने दूसरे परिशिष्ट में रक्खा है। गोरख के नाम से नई-नई रचनाएं ही नहीं गढ़ ली गई होंगी, इस बात की भी संभावना है कि पुरानी अलग-अलग कृतियों में भी पद्यों की संख्या अधिक पढ़ गई होगी । और रचनाओं में तो मैंने अधिक अंशों या छूटों का संकेत पाद- टिप्पणी में किया है किंतु 'सबदी' में जो उनकी सबसे प्रामिणक कृति जान पढ़ती है, संख्या उत्तरोत्तर अधिक बढ़ती गयी है, यह सुवीते से नहीं हो सकता था। इससे मैंने मूल भाग ही में सब को रखकर यह सूचित कर दिया है कि कौन-कौन किस प्रति में भाते हैं। जो सब प्रतियों में समान हैं ( १८६ साखी तक ) उनको अधिक प्रामाणिक मानना चाहिए । इनमें भी दो एक साखियाँ जो स्पष्ट ही अन्यों की हैं, इस लिए नहीं निकाली गई हैं कि उनके आगे-पीछे के कुछ अंश भी उन कवियों के हों जिनकी वे जान पड़ती हैं। इस बात की सूचना यया स्थान पाद-टिप्पणी में दे दी गयी है।