गोरख-वानी] १५१ छूटै जब ब्रह्म गांठि भरिये मेर नाला । सहजै पांचै चूरा भया पूरण कला ॥३॥ चंदा गोटा फूटा करि लै सूरिज करि लै पाटी। अह निसि धोबी धोवै त्रिवेणी की घाटी। तलै एक चंदा गोटा पाटी गोटा आछै। भौजल नदी पारि उतरीया सिध गोरष भाछै ।। ५४ ॥ जागौ हो जोगी अध्यात्म लागौ जागतड़ा मूल म हारौ म्हारा माई रे अंदर बैठो अपणो साहिव, देष सोधै सकल कमाई रे ॥ टेक ॥ दासी ने नारी अरु घर द्वारी, तुम्हे वेस्यां न करम न कीन्यो रे। बिधवा नारी नो संग करेस्यौ, तौ रोमि रोमि नरक पड़ोस्यो रे। सुमेरु अर्थात् सुषुग्या नाड़ी ( नाला) मर जाने पर अर्थात् इदा पिंगला जब सुषुम्णा में समा जाती है, सुषुम्णा मार्ग में प्राणायाम के द्वारा श्वास चना जाता है तब ब्रह्मप्रथि छूटती है और पांचों तत्व या तन्मात्राएं या ज्ञानेद्रियों चूर्ण हो जाती है, उनका हम पर प्रभाव नहीं रह जाता और पूर्ण कला (वन्द्र) प्रकट हो जाता है। सहस्रारस्य चन्द्र खूटा है और मूलाधारस्य सूर्य पाटी जिस पर पटक पटक कर धोनी कपड़े धोता है, साधक माया का मैज छुड़ाता है। ये गोटा पाटी इत्यादि नीचे भर्थात् इसी मनुष्य योनि में, इसी शरीर में हमें उपलब्ध हैं । इस प्रकार सिद्ध गोरख कहता है कि वह संसार रूपी नदी से इस प्रकार पार उतर गया है। हे बोगी जागो अध्यात्म की सिद्धि में लगी । जागृति के मूल को हे मेरे भाई, भूलो मत । हमारे ईश्वर हमारे ही अन्दर बैठे हुए हमारे कामों की जांच पड़ताल करते रहते हैं। हे योगी, दासी, स्त्री, घरबार और मकान रसना योगी के लिए वैसे ही हैं जैसे घेश्याकर्म में प्रवृत्त होना । अगर विधवा नारियों का (-वे ही अधिकतर जोगिन बनती हैं-) संग करोगे तो तुम रोम रोम करके नरक में पर जाओगे अर्थात् तुम्हारे राम राम में नरक को यन्त्रमा हो जावेगी। एक बूंद शुक्र के लिए स्वार्थवश तुम्हें बालहत्या का सा १ हस्त लेख में 'पूरिज' और 'करि' के बीच में 'करिज' है जो स्पष्ट ही रिज' के कारण लिखने का प्रमाद है।
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