गोरख-मानी] १३७ राजा के घरि सेल आछे, जंगल मधे बेल । तेली के घरि तेल आछ, तेल बेल सेल ।२। अहीर के घरि महकी श्राछै, देवल मध्ये ल्यंग। हाटी मधे हींग पाछे, हींग ल्यंग स्यंग ॥३॥ एक सुन्नै नाना बणियां, बहु भांति दिखलावै । भणंत गोरषि त्रिगुणी माया सत गुरु होइ लषावै ।४। ॥४२॥ गुरूजी' ऐसा करम न कीजै, ताथै श्रमी महारस छीजै ॥टेका। दिवसैं बाघणि मन मोहै राति सरोवर मोर्थे । जाणि बूझि रे मूरिष लोया घरि घरि वाघणी पोषै ॥ नदी तीरै बिरपा नारी संगै पुरषा अलप जीवन की पासा, मनथै उपज मेर पिसि पड़ई ताथै कंध बिनासा ।। है।) मुझे पता नहीं कि मेरे गुरु कहाँ चले गये, उनके विना मुझे नींद नहीं भाती । ( वही माया) कुम्हार के घर में हाँड़ी के रूप में है, अहीर के घर मलाई के रूप में और ब्राह्मण के घर उसको सी (रॉ) के रूप में। (इस प्रकार रांड़ (रोही), सांड़ी और हांडी एक ही चीज़ हैं।) माया हो राजा के वरछे (सेल-शक्य, चाय की तीखी नोक या बरक्षा) बंगन में बेल के रूप में और तेली के घर में तेल के रूप में विद्यमान है। इस प्रकार तेल पेल सेल एक ही हैं। वही अहीर के घर में भैंस है, देवालय में लिंग है, और दूकान में हींग है। होग लिंग और भैंस (गिन्, सींगवाला पशु, यहाँ पर मैंस) तीनों एक ही हैं। एक ही सूत्र से नाना रूप बने हुए हैं जो बहुत प्रकार से देखने में पाते हैं। गोरखनाय गुण रहित ( सद्गुणों से रहित, निंदनीय) माया का यह वर्णन करते हैं । सद्गुरु ही ऐसी माया का विवेकं करा सकता है॥ ४२ ॥ कहते हैं कि मछदरनाथ सिंहल की पद्मिनियों के बीच योग सिदि के लिए गये थे और वहीं रम गये। उन्हों को सम्बोधित कर गोरख कहते हैं-] १. (घ) गुरदेव । २. (क) क्रम । ३. (घ) अमी। टेक के बाद की र पंक्तियां (क) में नहीं है । ४. (क) वृपा । ५. (घ) जीवण । ६. (घ) मनकी (घ) पड़िई। ८. विणास। उपजनि । ७.
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