यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११६ | गोरखबानी आऊ नहीं जाऊं निरंजन नाथ की दुहाई । प्यंड ब्रह्मड पोजंता, अम्हे सब सिधि पाई ।। टेक ॥ काया गढ़ भींतरि नव लप साई । दस द्वारि अवधू ताली लाई । १ । काया गढ भीतरि देव देहुरा कासी। सहज सुभाइ मिले अविनासी।। चदंत गोरपनाथ सुणो नर लोई। काया गढ जीतेगा विरला कोई । ३ ।।२३।। पवनां रे तू जासी नै वाटी। जोगी अजपा जपें त्रिवेणी के घाटी ॥ टेक ।। चंदा गोटा टीका करिलै, सुरा करिलै वाटी। मूनी राजा लूगा धोवै, गंग जमुन की घाटी। १ । निरजन नाथ की दुहाई है । मेरा आवागमन मिट गया है। हमने पिड में समांर को छठ दर सय सिद्धि प्राप्ठ कर ली है । काया रूप गद के भीतर नी तास्त्र साइयों हैं । (नवरंध्र) अथवा चौरासी लाख योनियों के संस्कार जिन्हें पाट कर, विजय कर वशम द्वार प्रमरंध्र) तक पहुंचा जाता है जिस पर ताबा लगा हुया है। (जिसे कुंडलिनी शक्ति के द्वारा खोलना आवश्यक है।) देय देवालय और तीर्थ (प्रिफुटी, काशी ) इसी शरीर रूपी गढ़ के भीतर है, वहीं यिकाशी परमारमा सहज स्वभाव से मुझे मिले हैं गोरसनाय करते हैं कि हे नर लोगो, काया गद को कोई विरना ही जीत सकता है ॥ २६ ॥ हे पवन (मारा !) सुम किस रास्ते जाओंगे। नियणी (मिटी में योगी भरा जाप कर रहा है, ( वह मार्ग पन्द है। ) चन्द्रमा को तो मनाशी माधुन की टिकिया धीर सरन की पार्टी जिस पर पटक फर धोपी कप पोता है। इस प्रकार मुपुम्या में स्थित होकर योगिराज शरीर ग्रीकपद को पांना . १. ( रि।२. () पोलतां । (4) दगये। ४. (प) मार नुमाप । ५. (प) जोगा।