गोरख-बानी] अवधू बोल्या तत विचारी, पृथ्वी मैं बकबाली'। अष्टकुल परवत' जल बिन तिरिया, अदबुद अचंभा भारी ।।टेक॥ मन पवन अगम उजियाला, रवि ससि तार गयाई । तीनि राज त्रिविधि' कुल नाहीं, चारि जुग सिधि' बाई ।।१।। पांच' सहस में षट अपूठा, सप्त'१ दीप अष्ट नारी। नव पंड पृथी इकवीस मांहीं, एकादसि एक तारी१२ Il अवधूत ने विचार कर तत्व कहा जो पृथ्वी में बकवास ही समझा जा रहा । इस तत्व कथन में पूर्णिमा और अमावस्या को मिलाकर १६ तिथियों के बहाने योग वर्णित है। कुछ तिथियों का स्पष्ट उल्लेख नहीं है । (पदिवा) यह अचंभे की बात है कि अष्टकुल पर्वत बिना जल के ही तैर गये । अष्टकुल पर्वत स्थूल काया है और जल सूक्ष्म माया । काया में माया और प्रारमा दोनों हैं । जल अथवा माया के रहित हो जाने पर व्यक्ति के तरने में, मुक्त हो जाने में कोई संदेह नहीं रह जाता । (द्वैज ) मन, पवन के संयम से अगम ज्योति प्राप्त हुई है जिसके समक्ष सूर्य, चन्द्र और तारे गत हो जाते हैं अर्थात् छिप जाते हैं, तीज त्रैगुण्य के परिवार का राज्य अब रह नहीं गया है। चौथ, जगत. में सिद्धि ( का डका ) बज रहा है। पन्चमी, सहनार में स्थिति हो गई है। छठ, उलटी अंतर्मुख प्रवृत्ति हो गई है। सप्तमी, (अलख ज्योति का) दीप बल उठा है । भाठई, कुंडलिनी शक्ति सिद्ध हो गई। नौमी, नौखंड पृथ्वी और २१ ब्रह्मांड (काया के ही) भीतर हैं। (दशमी का उल्लेख अंत में है।) एकादशी, एकतार, एकरस समाधि लगी हुई है। द्वादशी इला-पिंगला का त्रिकुटी में सुपुग्ना द्वारा मेल हो गया है। (त्रयोदशी का उल्लेख नहीं है।) चौदशी, चित्त ब्रह्म में लीन हो गया है। (पूर्णिमा या अमावस) पोड़श दलकमल विशुद्ध चक्र के सिद्ध होने से योगी के बत्तीसों लक्षण प्राप्त हो गये हैं तथा जरा-मरण और भवभीति नष्ट हो गई है। दसई, उनमनी समाधि के द्वारा निरंजन रूप होकर दशमद्वार में बास पाकर उलटकर उसी शब्द में समा गये जिससे उत्पन्न ५ १. (घ) वंकवाली । २. (क) प्रवत । ३. (घ) तिरीया। ४. (घ) उदबुद । ५. (घ) पवनां । ६. (घ) आई । ७. (घ) तीन । ८. (घ) त्रिवधि । ६. च्यारि जुग सिंध। १०.(घ) पंच । ११. (घ) सपत । १२. (क) नव षटपृथ्वी इकबीस मांहीं ।
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