Ę , १3 १६ [गोरख-बानी गङ्गा तीर मतीरा' अवधू, फिरि फिरि बगिजां कीजै। अरघ वहन्ता: उरधैं लीजै, रवि सस मेला कीजै ॥३॥ चंद सूर दोऊ गगन" बिलधा, मईला घोर अंधारं । पंच बाइक जब न्यद्रा पौड्या, प्रगट्या पालि पगार ॥४॥ काया कंथा, मन जोगोटा, सत गुर मुझ लपाया । भन" गोरपनाथ न्हा'२ रापी, नगरी चोर मलाया' ॥ ५॥१०॥ (मुपम तत्व से धारा दुट कर स्थल का निर्माण हुआ है ।) स्वाधिष्ठान भौर विगुल यादि चक्र उसी धारा में बने हुए हैं। इसी धारा में भयया इन्हीं पको में प्राचारी पयवा भामा का निवास है। नौ सौ नदियाँ ( संपूर्ण नाही जाल) पनिहारिन हार पुष्टि करें प्रायधारा से हंस (जीय, पारमा) को सोंचती है सिमामा ल्पी येन पुष्पित हो जाती है और इला (चंद्र नामी) के फूल मज ज (शीनता दायक शान) टापा हो जाता है जिसका घिर फिर वाणिज्य करना पदिय । नीचे पहने वालो (अमन की प्रयया पवन को) धारा को उपर जाप, 2 में गदारप। यौर गन्द्र नादी और सूर्य नादी का मेल कीजिए। माल में इन दोनों (पन्नापी और मुयं नादी ) के लोप हो जाने से (ani माना के प्राधान्य से) (यायों के लिए) घोर अंधकार हो गया । दगो नि (नायक, पापक, पदानि ) अयान पंचेंद्रिय रान माई जानहर गोग। पाकार और सिंधार प्रा? हो पणे प्रर्यान् अंदर जाने का मार्ग पिया, जापानिया में करने का मार्ग मुज गपा।) पिका-गिएम, nिgग, यिगुरु. ध पिलधालोप ही गर्ग। पा:-पीगी। पानि पगार मार में का फाटक । मी-पानी र मे. (गोर नवाद।) र सपा उमरी गददी । पा. रहस्य गुम् गुमनाया। if rम गाय को मुरक्षित गरी, नारी पोर इंदुप REE मागे। ) ॥१०॥ !.4), 1.1")* ! !:) TTT 2. (**) IHR 4, 14).for? 15.6, p. 9.1") TT Bata bir 15 ( 1171 1 ...)?(,1) Tinti?!. 1.186.115 )'!!:,1)17:: . - -
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