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भूमिका - "कबीर का संबंध सिद्धों से मिलाना उतना आसान नहीं है............। भोटिया-साहित्य की सहायता से हम" सिद्धों "की धारा को बारहवीं शताब्दी तक ला सकते हैं। लेकिन बाद की-बोर तक की तीन शताब्दियों को भरना असंभव-सा ही मालूम होता है।"-मदंत राहुल सांकृत्यायन ने अपने एक लेख में लिखा । पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय ने अपने इतिहास में इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, "किंतु मैं समझता हूँ कि यह श्रासान है, यदि सिद्धों के साथ नाथ संप्रदाय वालों को भी सम्मिलित कर लिया जाय । मैं नहीं कह सकता कि इस बहुत ही स्पष्ट विकास की ओर" राहुल जी की "दष्टि क्यों नहीं गई १२" जो बात राहुल जी को कठिन जान पड़ी वही उपाध्याय जी को इस लिए सरल लगी कि उनके सामने 'हिंदी काव्य में योग-प्रवाह' शीर्षक मेरा निबंध था जो राहुल जी के सामने नहीं था। इस निबंध में मैंने पहले-पहल नाथ योगियों और उनकी कविता का परिचय दिया था। इस संक्षिप्त परिचय ही से विद्वानों ने मान लिया कि नाथ योगियों की 'बानियां' हमारे साहिस्यिक और सांस्कृतिक विकास की लड़ी में एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। इससे उनके संग्रह और संपादन की आवश्यकता स्पष्ट है। जिस कार्य को मैंने इस ग्रन्थ -'जोगेसुरी वानी' किया है। यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है। पहले भाग में गोरखनाथ की बानी संग्रहीत हैं और दूसरे भाग में अन्य योगियों की बानियां । नाथ योगियों की सरस्वती, वर्ष ३२, खंड १, पृष्ठ ७१५ । यह निबंध टिप्पणी ४ वाले मेरे निबंध से पहले लिखा और छपने भेज दिया गया था। २ हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास'-रामदीनसिंह रीडरशिप व्याख्यान, पृष्ठ १७५-६ ३ वही, पृष्ठ १७१, पाद-टिप्पणी। ४ काशी नागरी-प्रचारिणी सभा के साहित्य परिषद् में कोषोत्सव के अवसर पर दिया गया व्याख्यान (दिसम्बर १६३०) और पीछे नागरी-प्रचारिणी पत्रिका भाग ११, सं०४ (माघ १९८७ वि०) में प्रकाशित । 9