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जे एक [गोरख-बानी जिहि घरि चंद सूर नहिं ऊगै, तिहि धरि होसी उजियारा । तिहां जे आसण पूरी तौ सहज का भरौ पियाला, मेरे ग्यांनी राष्टा मन मांहिला हीरा बीधा सो सोधीने लीणां, सो पाणां सो पीवणां' मछिंद्र प्रसार्दै जती गोरप बोल्या, विमल रस जोई जोई नैं . मिलणां, सेरे ग्यांनी ॥४॥ गोरप जोगी तोला तोले, मिडि भिडियाधीले १२रतन अमोलै टेक॥ पाई पाई विद न पड़िया' 3 कंध । लाप तोला मोल १४ जाये ५, पिसै बिंद६ | १। जैसी मन उपजै१७ तैसा करम' ८ करै। काम क्रोध लाम ले ९ संसार सूनां मरै ॥२॥ (पहचान ) प्राप्त की, वह पुरुष के मेल से पुरुष के रस ( प्रसानन्द ) की रक्षा करता है। धौर इस प्रकार पुरुष के द्वारा पुरुप ( अपने चमत्व ) की उत्पत्ति करता है। (टसे प्रक्षानुभूति हो जाती है।) ज्दो सूर्य चंद्र के उगे यिना (वयज्योति का ) प्रकाश होता है वहाँ (म में ) आसन मारने से ( स्थिति होने से ) सहजानंद प्राप्त होता है। मन में का पिंधा होरा (पहुँच में थाया हुया थारमज्ञान ) बोनी का प्राप्य है। यही उसका गाना-पीना है। उसको देखकर ही निर्मल सहज पानन्द मिलता है ॥ ४ ॥ गोरग जोगी पनी परस से तोल तोल कर याणिज्य करता है। मिर-मि (समर दोहो) कर यह अमूल्य रन (शुक अयया परम ) को गोल वधिमा है। मगर बिंदु (या पिंद अक्षय है भाई, 'अस्ति' से भी सिब दो मरना है और 'पाप' में भी । ) गो शरीर (पंध, कंध ) नष्ट नहीं होना 121 १. (१) निदिनी विधि। . (ब) उगला । ३. (प) तहां । ८.(५, चागन । ५. (4) पूरे दिनों में मेरे पानी पूर्ण के बाद है । ६. (५) भरे। ७. () योग । ८ (१)मन ।। ६. (१) बंगा। १०. (१) में 'न नदी । ११ (स) नोभी, मीः। १३. (फ) बानीले । १३.()मा श्रा मी १४.( परिमोटा । १५.(प, ग.१()नि एक टि। " (Shri १८. (१) मम । १६. (4) पाना it's 1