यह पृष्ठ प्रमाणित है।
गोदान : 277
 


था, मानो खून सवार हो।

सोना ने उसकी ओर बरछी की-सी चुभने वाली आंखों से देखा और मानो कटार का आघात करती हुई बोली-ठीक-ठीक कहती हो?

'बिल्कुल ठीक। अपने बच्चे की कसम।'

'कुछ छिपाया तो नहीं?'

'अगर मैंने रत्ती-भर छिपाया हो तो आंखें फूट जाएं'

'तुमने उस पापी को लात क्यों नहीं मारी? उसे दांत क्यों नहीं काट लिया? उसका खून क्यों नहीं पी लिया, चिल्लाई क्यों नहीं?'

सिल्लो क्या जवाब दे।

सोना ने उन्मादिनी की भांति अंगारे की-सी आंखें निकालकर कहा-बोलती क्यों नहीं? क्यों तूने उसकी नाक दांतों से नहीं काट ली? क्यों नहीं दोनों हाथों से उसका गला दबा दिया? तब मैं तेरे चरणों पर सिर झुकाती। अब तो तुम मेरी आंखों में हरजाई हो, निरी बेसवा! अगर यही करना था, तो मातादीन का नाम क्यों कलंकित कर रही है, क्यों किसी को लेकर बैठ नहीं जाती, क्यों अपने घर नहीं चली गई? यही तो तेरे घर वाले चाहते थे। तू उपले और घास लेकर बाजार जाती, वहां से रुपये लाती और तेरा बाप बैठा, उसी रुपये की ताड़ी पीता। फिर क्यों उस ब्राहन का अपमान कराया? क्यों उसकी आबरू में बट्टा लगाया? क्यों सतवंती बनी बैठी हो? जब अकेले नहीं रहा जाता, तो किसी से सगाई क्यों नहीं कर लेती। क्यों नदी-तालाब में डूब नहीं मरती? क्यों दूसरों के जीवन में बिस घोलती है? आज मैं तुझसे कह देती हूं कि अगर इस तरह की बात फिर हुई और मुझे पता लगा, तो तीनों में से एक भी जीते न रहेंगे। बस, अब मुंह में कालिख लगाकर जाओ। आज से मेरे और तुम्हारे बीच में कोई नाता नहीं रहा।

सिल्लो धीरे से उठी और संभलकर खड़ी हुई। जान पड़ा, उसकी कमर टूट गई है। एक क्षण साहस बटोरती रही, किंतु अपनी सफाई में कुछ सूझ न पड़ा। आंखों के सामने अंधेरा था, सिर में चक्कर, कंठ सूख रहा था, और सारी देह सुन्न हो गई थी, मानो रोम छिद्रों से प्राण उड़े जा रहे हों। एक-एक पग इस तरह रखती हुई, मानो सामने गड्ढा है, तब बाहर आई और नदी की ओर चली।

द्वार पर मथुरा खड़ा था। बोला-इस वक्त कहां जाती हो सिल्लो? सिल्लो ने कोई जवाब न दिया। मथुरा ने भी फिर कुछ न पूछा। वही रुपहली चांदनी अब भी छाई हुई थी। नदी की लहरें अब भी चांद की किरणों में नहा रही थीं। और सिल्लो विक्षिप्त-सी स्वप्न-छाया की भांति नदी में चली जा रही थी।


तीस

मिल करीब-करीब पूरी जल चुकी है, लेकिन उसी मिल को फिर से खड़ा करना होगा। मिस्टर खन्ना ने अपनी सारी कोशिशें इसके लिए लगा दी हैं। मजदूरों की हड़ताल जारी है, मगर अब उससे मिल-मालिकों को कोई विशेष हानि नहीं है। नए आदमी कम वेतन पर मिल गए हैं और