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गोदान : 133
 


न देखा, वह पछताएगा। ऐसा सुअवसर फिर न मिलेगा। टिकट दस रुपये से लेकर दो आने तक के थे। तीन बजते-बजते सारा अहाता भर गया। मोटरों और फिटनों का तांता लगा हुआ था। दो हजार से कम की भीड़ न थी। रईसों के लिए कुर्सियों और बेंचों का इंतजाम था। साधारण जनता के लिए साफ-सुथरी जमीन।

मिस मालती, मेहता, खन्ना, तंखा और रायसाहब सभी विराजमान थे।

खेल शुरू हुआ तो मिर्जा ने मेहता से कहा-आइए डाक्टर साहब, एक गोई हमारी और आपकी हो जाय।

मिस मालती बोलीं-फिलासफर का जोड़ फिलासफर ही से हो सकता है।

मिर्जा ने मूंछों पर ताव देकर कहा-तो क्या आप समझती हैं, मैं फिलासफर नहीं हूं? मेरे पास पुछल्ला नहीं है, लेकिन हूं मैं फिलासफर, आप मेरा इम्तहान ले सकते हैं मेहताजी।

मालती ने पूछा-अच्छा बतलाइए, आप आइडियलिस्ट हैं या मेटीरियलिस्ट?

'मैं दोनों हूं।'

'यह क्योंकर?'

'बहुत अच्छी तरह। जब जैसा मौका देखा, वैसा बन गया।'

'तो आगत अपना कोई निश्चय नहीं है।'

'जिस बात का आज तक कभी निश्चय न हुआ, और न कभी होगा, उसका निश्चय मैं भला क्या कर सकता हूं, और लोग आखें फोड़कर और किताबें चाटकर जिस नतीजे पर पहुंचे हैं, वहां मैं यों ही पहुंच गया। आप बता सकती हैं,किसी फिलासफर ने अक्लीगद्दे लड़ाने के सिवाय और कुछ किया है?'

डाक्टर मेहता ने अचकन के बटन खोलते हुए कहा—तो चलिए हमारी और आपकी हो ही जाय। और कोई माने या न माने, मैं आपको फिलासफर मानता हूं।

मिर्जा ने खन्ना से पूछा-आपके लिए भी कोई जोड़ ठीक करूं?

मालती ने पुचारा दिया- हां, हां, इन्हें जरूर ले जाइए मिस्टर तंखा के साथ।

खन्ना झेंपते हुए बोले-जी नहीं, मुझे क्षमा कीजिए।

मिर्जा ने रायसाहब से पूछा-आपके लिए कोई जोड़ लाऊ?

रायसाहब बोले-मेरा जोड़ तो ओंकारनाथ का है, मगर वह आज नजर ही नहीं आते।

मिर्जा और मेहता भी नगी देह, केवल जांघिए पहने हुए मैदान में पहुच गये। एक इधर दूसरा उधर। खेल शुरू हो गया।

जनता बूढ़े कुलेलों पर हंसती थी, तालियां बजाती थी, गालियां देती थी, ललकारती थी, बाजियां लगाती थी। वाह। जरा इन बूढ़े बाबा को देखो। किस शान से जा रहे हैं, जैसे सबको मारकर ही लौटेंगे। अच्छा, दूसरी तरफ से भी उन्हीं के बड़े भाई निकले। दोनों कैसे पैंतरे बदल रहे हैं। इन हड्डियों में अभी बहुत जान है भाई। इन लोगों ने जितना घी खाया है, उतना अब हमें पानी भी मयस्सर नहीं। लोग कहते हैं, भारत धनी हो रहा है। होता होगा। हम तो यही देखते हैं कि इन बुड्ढों-जैसे जीवट के जवान भी आज मुश्किल से निकलेंगे। वह उधर वाले बुड्ढे ने इसे दबोच लिया। बेचारा छूट निकलने के लिए कितना जोर मार रहा है, मगर अब नहीं जा सकते बच्चा। एक को तीन लिपट गए। इस तरह लोग अपनी दिलचस्पी जाहिर