यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विक्रमादित्य का तेगा
६३
 


देने का वादा हरगिज़ न करना चाहिए था। इन विचारों ने राजा को कई मिनट तक अपने में खोया हुआ रक्खा। आखिर वह बोले—श्यामा, तुम कौन हो?

वृन्दा—एक अनाथ औरत।

राजा—तुम्हारा घर कहाँ है?

वृन्दा—माहनगर में।

रनजीतसिंह ने वृन्दा को फिर गौर से देखा। कई महीने पहले रात के समय माह्नगर में एक भोलो-भाली औरत की जो तसवीर दिल में खींची थी वह इस औरत से बहुत कुछ मिलती-जुलती थी। उस वक्त आँखें इतनी वेधड़क न थीं। उस वक्त आँखों में शर्म का पानी था, अब शोखी की झलक है। तव सच्चा मोती था, अब झूठा हो गया है।

महाराज बोले—श्यामा, इन्साफ़ किसका खून चाहता है?

वृन्दा—जिसे आप दोषी ठहरायें। जिस दिन हुजूर ने रात को माहनगर में पड़ाव किया था उसी रात को आपके सिपाही मुझे ज़बरदस्ती खींचकर पड़ाव पर लाये और मुझे इस काबिल नहीं रक्खा कि लौटकर अपने घर जा सकूँ। मुझे उनकी नापाक निगाहों का निशाना बनना पड़ा। उनकी बेबाक जबानों ने, उनके शर्मनाक इशारों ने मेरी इज्जत खाक में मिला दी। आप वहां मौजूद थे और आपकी बेकस रैयत पर यह जुल्म किया जा रहा था। कौन मुजरिम है? इन्साफ़ किसका खून चाहता है? इसका फैसला आप करें।

रनजीतसिंह ज़मीन पर आँखें गड़ाये सुनते रहे। वृन्दा ने ज़रा दम लेकर फिर कह्ना शुरू किया–मैं विधवा स्त्री हूँ। मेरी इज्जत और आवरू के रखवाले आप हैं। पति-वियोग के साढ़े तीन साल मैंने तपस्विनी बनकर काटे थे। मगर आपके आदमियों ने मेरी तपस्या धूल में मिला दी। मैं इस योग्य नहीं रही कि लौटकर अपने घर जा सकूँ। अपने बच्चे के लिए मेरी गोद अब नहीं खुलती। अपने बूढ़े बाप के सामने मेरी गर्दन नहीं उठती। मैं अब अपने गाँव की औरतों से आँखें चुराती हूँ। मेरी इज्जत लुट गयो। औरत की इज्जत' कितनी कीमती चीज़ है, इसे कौन नहीं जानता? एक औरत की इज्जत के पीछे लंका का शानदार राज्य मिट गया। एक ही औरत की इज्जत के लिए कौरव बंश का नाश हो गया। औरतों की इज्जत के लिए हमेशा खून की नदियाँ बही हैं और राज्य उलट गये हैं। मेरी इज्जत आपके आदमियों ने ली है, इसका जवाबदेह कौन है। इन्साफ़ किसका खून चाहता है, इसका फैसला आप करें।