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गुप्त धन
 


परदे में छिप जाता है मगर उसकी मद्धिम रोशनी छन-छनकर आती है उसी तरह गिलाफ के अन्दर से उस तेगे की किरनें नजरों के तीर मारा करती थीं।

मगर जब कोई व्यक्ति उसे हाथ में ले लेता तो उसकी चमक गायब हो जाती थी। उसका यह गुण देखकर लोग दंग रह जाते थे।

हिन्दुस्तान में इन दिनों शेरे पंजाब की ललकार गूंज रही थी। रणजीतसिंह दानशीलता और वीरता, दया और न्याय में अपने समय के विक्रमादित्य थे। उस घमंडी काबुल को, जिसने सदियों तक हिन्दोस्तान को सर नहीं उठाने दिया था, खाक में मिलाकर लाहौर जाते थे। माहनगर का खुला हुआ दिलकश मैदान और पेड़ों का आकर्षक जमघट देखा तो वहीं पड़ाव डाल दिया। बाजार लग गये। खेमे और शामियाने गाड़ दिये गये। जव रात हुई तो पचीस हजार चूल्हों का काला धुंआ सारे मैदान और बगीचे पर छा गया। और इस धुंए के आसमान में चूल्हों की आग, कंदीलें और मशालें ऐसी मालूम होती थीं गोया अँधेरी रात में आसमान पर तारे निकल आये हैं।

शाही आरामगाह से गाने-बजाने की पुरशोर और पुरजोश आवाजें आ रही थीं। सिक्ख सरदारों ने सरहदी जगहों पर सैकड़ों अफगानी औरतें गिरफ्तार कर ली थीं, जैसा उन दिनों लड़ाइयों में आम तौर पर हुआ करता था। वही औरतें इस वक्त सायेदार दरख्तों के नीचे कुदरती फर्श से सजी हुई महफिल में अपनी बेसुरी तानें अलाप रही थी और महफिल के लोग जिन्हें गाने का आनन्द उठाने की इतनी लालसा न थी, जितनी हँसने और खुश होने की, खूब जोर-जोर से कहकहे लगा-लगाकर हँस रहे थे। कहीं-कहीं मनचले सिपाहियों ने स्वांग भरे थे, वह कुछ मशालें और सैकड़ों तमाशाइयों की भीड़ साथ लिये हुए इधर-उधर धूम मचाते फिरते थे। सारी फौज के दिलों में बैठकर विजय की देवी अपनी लीला दिखा रही थी।

रात के नौ बजे होंगे कि एक आदमी काला कम्बल ओढे एक बांस का सोंटा लिये शाही खेमे से बाहर निकला और बस्ती की तरफ आहिस्ता-आहिस्ता चला। आज माहनगर भी खुशी से ऐंड रहा है। दरवाजों पर कई-कई बत्तियोंवाले चौमुखे दीवट जल रहे हैं। दरवाजों के सहन झाड़कर साफ कर दिये गये हैं। दो-एक जगह शहनाइयाँ बज रही हैं और कहीं-कहीं लोग भजन गा रहे हैं। काली कमलीवाला मुसाफिर इधर-उधर देखता-भालता गाँव के चौपाल में जा पहुँचा। चौपाल खूब