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गुप्त धन
 

हाथ ले जाकर तख्त पर मलिका शेर अफ़गन के बसल में बिठा दिया। भेटें दी जाने लगीं, सलामियाँ दाने लगीं, नफीरियों ने खुशी का गीत गाया और वाजों ने जीत का शोर मचाया। मगर जब जोश की यह खुशी जरा कम हुई और लोगों ने रिन्दा को देखा तो वह मर गयी थी। आरजूओं के पूरे होते ही जान निकल गयी। गोया आरजूएँ रूह बनकर उसके मिट्टी के तन को जिन्दा रखे हुए थीं।