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शेख मखमूर
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लम्बी जटाएँ बनायीं, जिस्म पर जिरहबख्तर के बजाय गेरुए रंग का दाना सजा, हाथ में तलवार के बजाय फ़कीरों का प्याला लिया। जंग के नारे के बजाय फ़क़ीरों को सदा बुलन्द की और अपना नाम शेख मखमूर रख दिया। मगर यह जोगी दूसरे जोगियों की तरह धूनी रमाकर न बैठा और न उस तरह का प्रचार शुरू किया। वह दुश्मन की फ़ौज में जाता और सिपाहियों की बातें सुनता। कभी उनकी मोर्चेबन्दियों पर निगाह दौड़ाता, कभी उनके दमदमों और किलों की दीवारों का मुआइना करता। तीन बार सरदार नमकखोर के पंजे से ऐसे वक्त निकले जब कि उन्हें जान बचाने की कोई आस न रही थी। और यह सब शेख मखमूर की करामात थी। मिनक़ाद का किला जीतना कोई आसान बात न थी। पाँच हजार बहादुर सिपाही उसकी हिफाजत के लिए कुर्वान होने को तैयार बैठे थे। तीस तो आग के गोले उगलने के लिए मुँह खोले हुए थीं और दो हजार सधे हुए तीरन्दाज हाथों में मौत का पैग़ाम लिये हुक्म का इन्तजार कर रहे थे। मगर जिस वक्त सरदार नमकखोर अपने दो हजार बहादुरों के साथ इस किले पर चढ़ा तो पाँचों हजार दुश्मन सिपाही काठ के पुतले बन गये। तोपों के मुंह बन्द हो गये और तीरन्दाज़ों के तीर हवा में उड़ने लगे। और यह सब शेख मखमूर की करामात थी। शाह साहब वहीं मौजूद थे । सरदार दौड़कर उनके कदमों पर गिर पड़ा और उनके पैरों की धूल माथे पर लगायी।

किशवरकुशा दोयम का दरबार सजा हुआ है । अंगूरी शराब का दौर चल रहा है और दरबार के बड़े-बड़े अमीर और रईस अपने-अपने दर्जे से हिसाब के अब्ब से साथ घुटना मोड़े बैठे हैं। यकायक भेदियों ने खबर दी कि मीर शुजा की हार हुई और वह जान से मारे गये। यह सुनकर किशवरकुशा के चेहरे पर चिन्ता के लक्षण दिखायी पड़े। सरदारों को सम्बोधित करके बोले—आप लोगों में ऐसा दिलेर कौन है जो इस बदमाश सरदार का सर कलम करके हमारे सामने पेश करे। इसकी गुस्ताखियाँ जब हद से आगे बढ़ी जाती हैं। आप ही लोगों के बड़े-बूढ़ों ने यह मुल्क तलवार के जोर से मुरादिया खानदान से छीना था। क्या आप उन्हीं पुरखों की औलाद नहीं हैं? यह सुनते ही सरदारों में एक सन्नाटा छा गया, सब के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी और किसी की हिम्मत न पड़ी कि बादशाह की दावत कबूल करे। आखिरकार शाह किशवरकुशा के बुड्ढे चचा खुद. उठे और