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२०६ गुप्त धन

जिन्दगी से तंग नहीं हो तो मैं सब कुछ पाकर क्यों मौत की ख्वाहिश करूं? अब रात बहुत कम रह गयी है।यहाँ से जान लेकर भागों वर्ना मेरी सिफ़ारिश भी तुम्हें नासिर के गुस्से की आग से न बचा सकेगी। तुम्हारी यह गैरत की कटार मेरे क़ब्जे में रहेगी और तुम्हें याद दिलाती रहेगी कि तुमने इज्जत के साथ गैरत भी खो दी।

-ज़माना, जुलाई १९१५

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