यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८०
गुप्त धन
 

वाला आदमी आज तक मेरी नज़र से नहीं गुज़रा। तुम जानते हो कि मुझे मानव स्वभाव के अध्ययन का हमेशा से शौक है लेकिन मेरे अनुभव में तुम अपनी तरह के अकेले आदमी हो। मैं यह न मानूंगा कि तुम्हारे दिल में दर्द और घुलावट नहीं है। उसे मैं अपनी आँखों देख चुका हूँ। फिर इस ज्ञानियों जैसे संतोष और शान्ति का रहस्य तुमने कहाँ छिपा रक्खा है? तुम्हें इस समय यह रहस्य मुझसे कहना पड़ेगा।

साईंदयाल कुछ सोच-विचार में पड़ गया और जमीन की तरफ ताकते हुए बोला—यह कोई रहस्य नहीं, मेरे कर्मों का फल है।

यह वाक्य मैंने चौथी बार उसकी ज़बान से सुना और बोला—जिन कर्मों का फल ऐसा शक्तिदायक है, उन कर्मों की मुझे भी कुछ दीक्षा दो, मैं ऐसे फलों से क्यों वंचित रहूँ।

साईदयाल ने व्यथापूर्ण स्वर में कहा—ईश्वर न करे कि तुम ऐसा कर्म करो और तुम्हारी ज़िन्दगी पर उसका काला दाग लगे। मैंने जो कुछ किया है, वह मुझे ऐसा लज्जाजनक और ऐसा घृणित मालूम होता है कि उसकी मुझे जो कुछ सजा मिले, मैं उसे खुशी के साथ झेलने को तैयार हूँ। आह! मैंने एक ऐसे पवित्र खानदान को, जहाँ मेरा विश्वास और मेरी प्रतिष्ठा थी, अपनी वासनाओं की गन्दगी में लिथेड़ा है, एक ऐसे पवित्र हृदय को जिसमें मुहब्बत का दर्द था, जो सौन्दर्यबाटिका की एक नयी-नयी खिली हुई कली थी, जिसमें सरलता थी और सच्चाई थी, उस पवित्र हृदय में मैंने पाप और विश्वासघात का बीज हमेशा के लिए बो दिया। यह पाप है जो मुझसे हुआ है और उसका पल्ला उन मुसीबतों से बहुत भारी हैं जो मेरे ऊपर अब तक पड़ी हैं या आगे चलकर पड़ेंगी। कोई सज़ा, कोई दुख, कोई क्षति उसका प्रायश्चित नहीं कर सकती।

मैंने सपने में भी न सोचा था कि साईंदयाल अपने विश्वासों में इतना दृढ़ है। पाप हर आदमी से होते हैं, हमारा मानव जीवन पापों की एक लम्बी सूची है, वह कौन-सा दामन है जिस पर यह काले दाग न हों। लेकिन कितने ऐसे आदमी हैं जो अपने कर्मों की सज़ाओं को इस तरह उदारतापूर्वक मुस्कराते हुए झेलने के लिए तैयार हो। हम आग में कूदते हैं लेकिन जलने के लिए तैयार नहीं होते।

मैं साईंदयाल को हमेशा इज़्ज़त की निगाह से देखता हूँ, इन बातों को सुनकर मेरी नज़रों में उसकी इज्जत तिगुनी हो गयी। एक मामूली दुनियादार आदमी के सीने में एक फ़कीर का दिल छिपा हुआ था जिसमें ज्ञान की ज्योति चमकती थी। मैंने उसकी तरफ श्रद्धापूर्ण आँखों से देखा और उसके गले से लिपटकर बोला—