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नेकी १५१ ठाकुरद्वारा तैयार हुआ। रेवती बहू से सास वनी, लेनदेन, वहीखाता हीरामणि के हाथ में आया। हीरामणि अब एक हृष्ट-पुष्ट लम्बा-तडंगा नौजवान थाबहुत अच्छे स्वभाव का, नेक । कभी-कभी बाप से छिपाकर गरीव असामियों को यो ही कर्ज दे दिया करता। चिन्तामणि ने कई बार इस अपराध के लिए बेटे को आंखें दिखायी थीं और अलग कर देने की धमकी दी थी। हीरामणि ने एक बार एक संस्कृत पाठशाला के लिए पचास रुपया चन्दा दिया। पण्डित जी उस पर ऐसे क्रुद्ध हुए कि दो दिन तक खाना नहीं खाया। ऐसे अप्रिय प्रसंग आये दिन होते रहते थे, इन्हीं कारणों से हीरामणि की तबीयत बाप से कुछ खिची रहती थी। मगर उसकी यह सारी शरारतें हमेशा रेवती को साजिश से हुआ करती थीं। जब कस्बे की गरीब विधायें या ज़नीन्दार के सताये हुए असामियों की औरतें रेवती के पास आकर हीरामणि को आंचल फैला-फैलाकर दुआएं देने लगती तो उसे ऐसा मालूम होता कि मुझसे ज्यादा भाग्यवान और मेरे बेटे से ज्यादा नेक आदमी दुनिया में कोई न होगा। तब उसे बरबस वह दिन याद आ जाता जव हीरामणि कीरत सागर में डूब गया था और उस आदमी की तस्वीर उसकी आंखों के सामने खड़ी हो जाती जिसने उसके लाल को डूबने से बचाया था। उसके दिल की गहराई से दुआ निकलती और ऐसा जी चाहता कि उसे देख पाती तो उसके पांव पर गिर पड़ती। उसे अब पक्का विश्वास हो गया था कि वह मनुष्य न था बल्कि कोई देवता था। वह अब उसी खटोले पर बैठी हुई, जिस पर उसकी सास बैठती थी, अपने दोनों पोतों को खिलाया करती थी। आज हीरामणि की सत्ताईसवीं सालगिरह थी। रेवती के लिए यह दिन साल भर के दिनों में सबसे अधिक शुभ था। आज उसका दया का हाथ खूब उदारता दिखलाता था और यही एक अनुचित खर्च था जिसमें पण्डित चिन्तामणि भी शरीक हो जाते थे। आज के दिन वह बहुत खुश होती और बहुत रोती और आज अपने गुमनाम भलाई करनेवाले के लिए उसके दिल से जो दुआएं निकलतीं वह दिल और दिमाग की अच्छी से अच्छी भावनाओं में रंगी होती थीं। उसी दिन की बदौलत तो आज मुझे यह दिन और यह सुख देखना नसीब हुआ है! ३ एक दिन हीरामणि ने आकर रेवती से कहा-अम्मा, श्रीपुर नीलाम पर चढ़ा हुआ है, कहो तो मैं भी दाम लगाऊं। रेवती-सोलहो आना है ?