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गुप्त धन
 

फेर को कोसते थे मगर रिआया खुश थी। हां जब वह सब घंवों से फुरसत पाता तो एक भोली-भाली सूरतवाली लड़की उसके खयाल के पहलू में आ बैठती और थोड़ी देर के लिए सागर घाट का वह हरा-भरा झोंपड़ा और उसकी मस्तियाँ आंखों के सामने आ जातीं। सारी बातें एक सुहाने सपने की तरह याद आ-आकर उसके दिल को मसोसने लगतीं लेकिन कभी-कभी खुद-बखुद उसका ख्याल इन्दिरा की तरफ भी जा पहुँचता। गो उसके दिल में रम्भा की वही जगह थी मगर किसी तरह उसमें इन्दिरा के लिए भी एक कोना निकल आया था। जिन हालतों और आफतों ने उसे इन्दिरा से बेजार कर दिया था वह अब रुखसत हो गयी थीं। अब उसे इन्दिरा से कुछ हमदर्दी हो गयी थी। अगर उसके मिजाज में घमण्ड हैं, हुकूमत है, तकल्लुफ है, शान है तो यह उसका कसूर नहीं, यह रईसजादों की आम कमजोरियां हैं। यही उनकी शिक्षा है। वे बिलकुल बेबस और मजबूर हैं। इन बदले हुए और संतुलित भावों के साथ जहाँ वह बेचैनी के साथ रम्भा की याद को ताजा किया करता था वहां इन्दिरा का स्वागत करने और उसे अपने दिल में जगह देने के लिए तैयार था। वह दिन भी दूर नहीं था जब उसे उस आजमाइश का सामना करना पड़ेगा। उसके कई आत्मीय अमीराना शान-शौकत के साथ इन्दिरा को बिदा कराने के लिए नागपुर गए हुए थे। मग़नदास की तबीयत आज तरह-तरह के भावों के कारण, जिनमें प्रतीक्षा और मिलन की उत्कंठा विशेष थी, उचाट-सी हो रही थी। जब कोई नौकर आता तो वह सम्हल बैठता कि शायद इन्दिरा आ पहुँची। आखिर शाम के वक्त, जब दिन और रात गले मिल रहे थे, जनानखाने में जोर-शोर के गाने की आवाजों ने बहू के पहुंचने की सूचना दी।

सुहाग की सुहानी रात थी। दस बज गये थे। खुले हुए हवादार सहन में चांदनी छिटकी हुई थी, वह चांदनी जिसमें नशा है, आरजू है और खिंचाव है। गमलों में खिले हुए गुलाब और चम्पे के फूल चांद की सुनहरी रोशनी में ज्यादा गम्भीर और खामोश नज़र आते थे। मगनदास इन्दिरा से मिलने के लिए चला। उसके दिल में लालसाएं जरूर थीं मगर एक पीड़ा भी थी। दर्शन की उत्कण्ठा थी मगर प्यास से खाली । मुहब्बत नहीं,प्राणों का खिंचाव था जो उसे खींचे लिये जाता था। उसके दिल में बैठी हुई रम्भा शायद बार-बार बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी। इसीलिए दिल में धड़कन हो रही थी। वह सोने के कमरे के दरवाजे पर पहुंचा। रेशमी पर्दा पड़ा हुआ था। उसने पर्दा उठा दिया। अन्दर एक औरत सफेद साड़ी पहने खड़ी थी। हाथ में चन्द खूबसूरत चूड़ियों के सिवा उसके बदन पर