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गुप्त धन
 

मुर्दे को लड़का दिया, कौन पतियायेगा। जब से यह सुनावनी आयी है, सब से बहुत उदास रहती हैं। एक दिन रोती थीं। मेरे सामने की बात है। बाप ने देख लिया। समझाने लगे ? लड़की को बहुत चाहते हैं। सुनती हूँ, दामाद को यहीं बुलाकर रक्खेंगे। नारायन करे, मेरी रानी दूधों नहाय पूतों फले। माली मर गया था, उन्होंने आड़ न ली होती तो घर भर के टुकड़े माँगती।

भगनदास ने एक ठण्डी साँस ली। बेहतर है, अब यहाँ से अपनी इज्जत-आबरू लिये हुए चल दो। यहाँ मेरा निबाह न होगा। इन्दिरा रईसज़ादी है। तुम इस काविल नहीं हो कि उसके शौहर बन सको। मालिन से बोला--तो धर्मशाले में जाता हूँ। जाने वहाँ खाट-बाट मिल जाती है कि नहीं, मगर रात ही लो काटनी है, किसी तरह कट ही जायगी। रईसों के लिए मखमली गद्दे चाहिए, हम मजदूरों के लिए पुआल ही बहुत है।

यह कहकर उसने लुटिया उठायो, डण्डा सम्हाला और दर्दभरे दिल से एक तरफ को चल दिया।

उस वक्त इन्दिरा अपने झरोखे पर बैठी हुई इन दोनों की बातें सुन रही थी। कैसा संयोग है कि स्त्री को स्वर्ग की सब सिद्धियाँ प्राप्त हैं और उसका पति आवारों की तरह मारा-मारा फिर रहा है। उसे रात काटने का टिकाना नहीं।

मानदास निराश विचारों में डूबा हुआ शहर से बाहर निकल आना और एक सराय में ठहरा जो सिर्फ इसलिए मशहूर थी, कि वहाँ शराब की एक दुकान थी। यहाँ आस-पास से मजदूर लोग आ-आकर अपने दुख को भुलाया करते थे। जो भूले- भटके मुसाफिर यहाँ ठहरते, उन्हें होशियारी और चौकसी का व्यावहारिक पाठः मिल जाता था। मगनदास थका-माँदा था ही, एक पेड़ के नीचे चादर बिछाकर सो रहा और जब सुबह को नींद खुली तो उसे किसी पोर-औलिया के ज्ञान की सजीव दीक्षा का चमत्कार दिखायी पड़ा जिसकी पहली मंजिल वैराग्य है। उसकी छोटी-सी पोटली जिसमें दो-एक कपड़े और थोड़ा-सा रास्ते का खाना और लुटिया-- डोर बँधी हुई थी, गायब हो गयी। उन कपड़ों को छोड़कर जो उसके बदन पर थे अब उसके पास कुछ भी न था और भूख जो कंगाली में और भी तेज़ हो जाती है उसे बेचैन कर रही थी। मगर दुइ स्वभाव का आदमी था, उसने किस्मत का रोना नहीं रोया, किसी तरह गुजर करने की तदबीरें सोचने लगा। लिखने और गणित में