टोडरमल सकवरके वजीर-माल महाराजा टोडरमल अपने समयकं अद्विनीय बुद्धिमान पुरुष थे। हिमाब-किताब और माली मामलेक समझने में उनकी बड़ी प्रमिद्धि थी। जो महाजनी दस्तूर बही-ग्वानोंका हिमाब, हुण्डी चिट्टीकं लिम्बनेका ढंग, इस ममय तक यहाँके वैश्योंमें जारी है. इमकी प्रधान-प्रधान बान महाराज टोडरमलकी चलाई हुई हैं। बङ्ग- देशमं आकर आपने पठानोंको जिम वीरतासे सीधा किया था, उमसे उनकी बहादुरीकी भी बड़ी धाक है। पर यह कम आदमी जानते हैं कि वह कवि भी थे और उनकी बनाई बहुतसी कविता है। वह कविता है, उमी ढंगकी जिम ढंगके वह म्वयं थे । कलकत्ता बंगाल बैङ्कके हेडमुंशी पण्डित शिवगोपालजी तिवारीके अनुग्रहसे हमें महाराज टोडरमलकी कुछ कविता प्राप्त हुई। उक्त पण्डितजी 'भारतमित्र'के पुराने उत्साही परिचालक सज्जनोंमेंसे हैं। महाराज टोडरमलने सिद्धान्त किया था --- मका, अदालत, जामिनी, परनारीको साथ, यह चारों चौपट करें, रहं दूर तजि आस । बहुत मकान बनवाना, बहुत मुकदमेबाजी करना और बहुत जमानन करना और पराई स्त्रीके फरमें पड़ना, यह चारों बात आदमी- को चौपट कर देती हैं ! बहुत सुन्दर सिद्धान्त है। हुण्डी क्या है, इसके विषयमें कहते हैं- ऊपर लिम्बे निवास सब, रक्खै मुद्दत होय । चलन निशां अन्दाज़ धन, हुण्डी कहिये सोय । हुण्डी खोये पेठ लिख, पेठ गये परपेठ । [ ६५ ।
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