पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७२३

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गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता बसन्तमें विरह । कामिनो--थामो थामो सखी ! यामिनी -क्यों सखी, ऐसे तुम क्यों करती हो ? कामिनी-बीता शिशिर बसन्त आगया, यामिनो-तभी पसीनों मरती हो । कामिनी -देखो देखो कोकिल कैसे कुहू कुहू रव करते हैं ? यामिनी--चोल भी उड़ती हैं कव्वे मीठे बोल उचरते हैं। कामिनी-अलिगन कैसे गूंज रहे हैं खिले हुए फूलोंके पास । यामिनी--बेशक बहुत ठोक वह देखो कीड़े चाट रहे हैं घास ! कामिनी-मलय पवन बहता है देखो- यामिनी-हां हां धूल उड़ाता है। कामिनी--क्या कीजे क्या कीजे प्यारी ? यामिनी-समझमें कुछ नहिं आता है ! कामिनी-जोवनकी ज्वालासे जलती हूं, अब यह जीवन जाता है। यामिनी-सच कहती हो तीस ढले पर जोबन जोर दिखाता है। कामिनी-हाय हाय सखि ! यामिनी-वाह वाह ! कामिनी-क्या कीजे ? यामिनी-अपना काम करो। कामिनी - श्याम बिना अब मरती हूं, यामिनी-हां मरती हो तो दूर मरो। -भारतमित्र, १८ मार्च १९०५ ई. [ ७.६ ]