उर्दको उत्तर १७ मई १६०० ई० के अबधपञ्चमें “उद्देकी अपील" नामसे एक कविता छपी थी, * उसका यह उत्तर है। असल अपील नीचे फुट नोटमें दी गई है। छोटे लाट मेकडानल्डने युक्तप्रदेशकी अदालतोंमें नागरी अक्षर जारी किये, उस समय उईके पक्षवालोंने यह जोश दिखाया था। 'भारतमित्र' द्वारा उसका यह उत्तर दिया गया था :- न बीवी बहुत जीमें घबराइये. मम्हलिये जरा होशमें आइये । कहो क्या पड़ी तुमपे उफताद है, सुनाओ मुझे कैसी फरियाद है। किसीने तुम्हारा बिगाड़ा है क्या ? सुनं हाल में भी उसका जरा । न उठतीमें यों मौतका नाम लो. कहां सौत, मत सौनका नाम लो। बहुत तुम पे हैं मरनेवाले यहां, तुम्हारी है मरनेकी बारी कहां ?
- उक्त अपील इस प्रकार है,-
खुदाया पड़ी कैसी उफताद है, बड़लाट माहवसे फरियाद है। मुझे अब किसीका सहारा नहीं, यह बेवक्त मरना गवारा नहीं । मेरा हाल बहरे खुदा देखिये, जरा मेरा नश्वोनुमा देखिये । [ ७०० ।