पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६९९

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गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता बाबाजी वचन जरा सुर तालसे नाचो जो अण्डा सोही ब्रह्माण्डा इसमें नाहीं भेद । दोनों अच्छे समझो बच मोई आंत सोइ मेद ।। वेदका मार यही है, बुद्धिका पार यही है, मिले तो अण्डा चक्खो, मिले तो मण्डा भक्खो । चेलागण वचन । हां गुरुजी इसका खोलो भेद किसको पूजें किसको ध्यावं किसको भोग लगावे, किमको मान किमको जान किसको सीस निवावं ? गुरुजी इसका खोलो भेद कैसे पूज कैसे ध्यावं कैसे भोग लगाव, कैसे मान कैसे जाने कैसे सीस निवांव ? बाबाजी वचन। एकही गाओ एकही ध्याओ करो उसीका ध्यान । जो बोतलमें सो होटलमें निराकार भगवान ।। उसीका ध्यान लगाओ, उसीमें मन अटकाओ। वही है मक्खन बिसकुट, वही है मुर्गी कुकट । अगल बगलमें बिसकुट मारो बोतल रक्वो पास । आंख मूंदकर ध्यान लगाओ छः रितु बारह मास ।। गिरे प्याले पर प्याला, खुले तब दिलका ताला । मिले नब प्रभुका दरसन, होय गहरा संघरपन । सबका नृत्य । सब हिन्दू सब हिन्दृ भाई, सब हिन्दृ सब हिन्द । जूता हिन्दू छाता हिन्दू साबन दियासलाई । । ६८२ ]