पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६५५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली फुट-कविता आज पुलिसवाले उनको करके बरजोरी जेल रहे हैं भेज, लगा सरसोंकी चोरी। हा ! वह उनकी सम्पति वह उनकी प्रभुताई एक चिन्ह भी उनका नहिं देता दिखलाई । कहां गये वह गांव मनोहर परम सुहाने सबके प्यारे परम शान्तिदायक मनमाने । कपट और क्रूरता पाप और मदसे निर्मल सीधे सादे लोग बस जिनमें नहिं छलबल | एक साथ बालिका और बालक जहं मिलकर खेला करते औ घर जाते सांझ परे पर । पाप भरे व्यवहार पाप मिश्रित चतुराई जिनके सपनेमें भी पास कभी नहिं आई। एक भावसे जाति छतीसों मिलकर रहती एक दूसरेका दुख सुख मिलजुल कर सहतीं । जहां न झूठा काम न झूठी मान बड़ाई रहती जिनके एकमात्र आधार सचाई। सदा बड़ोंकी दया जहां छोटोंके ऊपर औ छोटोंके काम भक्ति पर उनकी निरभर । मेल जहां सम्पत्ति, प्रीति जिनका सञ्चा धन एकहि कुलकी भांति सदा बसते प्रसन्न मन । पड़ता उनमें जब कोई झगड़ा उलझेड़ा आपसमें अपना करलेते सब निबटेड़ा। दिन दिन होती जिनकी सच्ची प्रीति सवाई एक चिन्ह भी उसका नहीं देता दिखलाई ।। [ ६३८ ]