पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६५०

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वसन्तोत्सव (१) आ आ प्यारी वसन्त सब ऋतुओंमें प्यारी तेरा शुभागमन सुन फूली केसर क्यारी। सरसों तुझको देख रही है आंख उठाये गंदे लेले फूल खड़े हैं सजे सजाये । आस कर रहे हैं टेसू तेरे दर्शन की फूल फुल दिखलाते हैं गति अपने मन की । बौराईसी ताक रही है आमकी मौरी देख रही है तेरी बाट वहोरि बहोरी। पेड़ बुलाते हैं तुझको टहनियां हिलाके बड़े प्रेमसे टेर रहे हैं हाथ उठाके । मारग तकते बेरीके हुए सब फल पीले सहते सहते शीत हुए सब पत्तं ढीले । नीबू नारङ्गी हैं अपनी महक उठाये सब अनार हैं कलियोंकी दुरवीन लगाये । पत्तोंने गिर गिर तेरा पांवड़ा बिछाया झाड़पोंछ वायूने उसको स्वच्छ बनाया। फुलसुंघनीकी टोलो उड़ उड़ डाली डाली झूम रही हैं मदमें तेरे हो मतवाली । इस प्रकार है तेरे आने की तय्यारी आ आ प्यारी वसन्त सब ऋतुओंमें प्यारी । [ ६३३ ]