पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६४३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता वरञ्च जीते रहनेसे तो मरजाना भी उत्तम है। जागे रहना जिसका सोनेकी अपेक्षा भारी है, ऐसेका मरजाना जीते रहनेसे सुखकारी है। जिन दुष्टोंके निकट धर्म पापसे दबाना अच्छा है, उनका तुरन्त इस पृथ्वीसे उठ जानाही अच्छा है। जैसे एक धार्मिक सबका खेवा पार लगाता है, वैसेही एक पापी बेड़ेका बेड़ा डुबवाता है । जो कुछ पाप आज इस दीन हीन जातीमें छाया है, हे हे पापी जनो ! किया है तुमने इसने पाया है। हाय हाय दुष्कर्म तुम करो और उसका फल यह पावं, पापी पाप कर औ चलदें निर्दोषी पकड़े जावं ! तुमसे लाख बने बिगड़े कुछ हानि लाभ नहीं होना है, जिनके बिगड़े सब जग बिगड़े उनका हमको रोना है। जिनके कारण सब सुख पावं जिनका बोया सब जन खायं, हाय हाय उनके बालक नित भूखोंके मारे चिल्लायं । हाय जो सबको गेहूं दं वह ज्वार बाजरा खाते हैं, वह भी जब नहिं मिलता तब वृक्षोंकी छाल चबाते हैं। उपजाते हैं अन्न सदा सहकर जाड़ा गरमी बरसात, कठिन परिश्रम करते हैं बैलोंके संग लगे दिन रात । जेठकी दुपहरमें वह करते हैं एकत्र अन्नका ढेर, जिसमें हिरन होंय काले चील देती हैं अण्डा गेर । काल सर्पकी सो फुफकार लुये भयानक चलती हैं, धरतीकी सातों परतें जिसमें आवासी जलती हैं। तभी खुले मैदानोंमें वह कठिन किसानी करते हैं, नंगे तन बालक नर नारी पित्ता पानी करते हैं। [ ६२६ ]