पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६४१

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गुप्त-निबन्धावली सुट-कविता जब कोई इसका हेतु पूछता था तो उससे कहते थे। भूखे पेट न सोये कोई इस डरसे मैं डरता हूं, भूल न जाऊं भूखोंको इसलिये पेट नहिं भरता हूं। यद्यपि नाम तुम्हारा पृथ्वीमें प्रसिद्ध नहिं थोड़ा है, खानेको कलिया पुलाव चढ़नेको गाड़ी घोड़ा है। सांझ सबेरे उनपर बैठ हवा खानेको जाते हो, इधर उधर सड़कोंमें फिरकर उल्टे घरको आते हो। नंगे भूखे तुमको सच है कभी नहीं रहना पड़ता, पैदल चलनेसे पाओंमें फूल तलक भी नहिं गड़ता। फिर भी क्या नंगे भूखों पर दृष्टि नहीं पड़ती होगी, सड़क कूटने वालोंसे तो आंख कभी लड़ती होगी ? कभी ध्यानमें उन दुखियोंकी दीन दशा भो लाते हो, जिनको पहरों गाड़ी घोड़ोंके पीछे दौड़ाते हो। वह प्रचण्ड ग्रीष्मकी ज्वाला औ उनके वे नग्न शरीर, बन्द सेजगाड़ी पर चलनेवाला क्या जाने बेपीर ? जलती हुई सड़क पर नंगे पैरों दौड़े जाते हैं, कुछ बिलम्ब होजाता है तो गाली हण्टर खाते हैं लूके मारे पंखेवालेकी गति वह क्योंकर जाने, शीतल खसकी टट्टीमें जो लेटा हो चादर ताने । बाहर बैठा वह बेचारा तत्ते झोंके खाता है, सिरपर धूल गिरा करती है बैठा डोर हिलाता है। बहुत परिश्रम करते करते ऊंघ कभी जो जाता है, बिना बूझ लातें गाली उसके बदलेमें पाता है। हा ईश्वर ! हाहा ईश्वर! तेरी माया है अपरम्पार, क्या जाने क्यों दुखियों हीको दुख देता है बारम्बार [ ६२४ ]