पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६३४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

लक्ष्मी-स्तोत्र

(१)

जय, पङ्कजलोचनि, जय, श्रीपति हिये बिहारनि।

जय जय, महालक्ष्मी, जय भवसागर तारनि।

जयति सुरेश्वरि, हरिप्रिये, जय कमल निवासिनि।

जयति सर्वदे दयानिधे, जय जयति सुहासिनि।।

जय जयति सदा सुखदायिनी,

दारिद दुख सबको हरौ।

मा दयावती सब जगत हित,

वसुवर्षा निसदिन करौ।

(२)

जय जय छीर समुद्रसुते अनधन बरसावनि।

जय जय हरिवल्लभे, जयति दारिद्र नसावनि।।

जय त्रिभुवन जननी, जय त्रिभुवन पालन करनी।

ब्रह्मादिक तव ध्यान धरै, जय आनंद भरनी।।

बूड़त दारिद्र समुद्र महं,

नाव हमारी आज मा।

राखहु राखहु जगपतिप्रिये,

हाथ तुम्हारेहि लाज मा।

(३)

जयति चञ्चला चपला कमला कमलविहारिनि।

ललिता, मन्मथजननि भक्तगन कष्टनिवारिनि।।

पण्डितजीकी विद्या गुनिजनको गुन तो बिन।

सीलवन्तको सील, मात पूछत है कोइन।

[६१७]