पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६२३

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गुप्त-निषन्धावली स्फुट-कविता नाहिन यामहं मोह न लोभ न कोह । नाहिन भाव भगतिको नाहिन छोह । नाहिन यामहं सुख सम्पतिकर आस । नाहिन नर्क और जमपुरको त्रास ।। नाहिन यामहं सरिता लहर तरङ्ग । नाहिन यामहं इच्छा हरष उमंग । नाहिन यामहं सीतल बरकी छांह । अरु नाहिन तरुनिनकै कोमल बांह । नाहिन यामहं सीतल मन्द समीर । नाहिन सरवर-तट हंसनकी भीर ।। या हिय महं अब फूलत फलत न बाग । खिलत न कबहूं फूल, न उड़त पराग । कबहुं न कोयल कूजहिं बोलहिं मोर । कबहुं न पंछी कीर मचावहिं रोर । गाढ़ तमोमय रजनी घोर अंधार । तम ऊपर तम चहुं दिस अमित अपार ।। कालराति सम घोर घोर अति घोर । तमके बादल छाय रहे चहुं ओर । उमड़त तमको सागर लेत हिलोर । जो कछ पावत डारत तुरत झकोर । ऐसो तम या हियमहँ रह्यो समाय । निस दिन तामहं जीवन डूब्यो जाय ।।