पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६१७

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गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता (8) सो आंखिन जल आज चढ़ाय चढ़ाय । पूजे मात तोहि हम चित्त लगाय ।। उन चरननमें अंसुवन, धार बहायक। सब दुख मेटें बिस्वहिं आज, डुबायकै। बहुत दिवस पर आज भंट, तोसों भयी। अब तोहि जान न देहि मात ममतामयी ।। आवहुरे मब भारतवासी धाय । खोलो आंख निहारो आई माय ।। झाडो तनकी खेह कलेस, बिहाय रे। बैठा चल के गोद बुलावत, माय रे।। आई आई मात चलहुं, दरसन करें । जननी जननी बोलि प्रफुल्लित, मन करें । बलि बलि जाऊं लै लै माको नाम । बोलत बोलत नाचे मन बसु जाम ।। ज्यों ज्यों माको नांव जीह पर आत है। त्यों त्यों इच्छा दूनो बाढ़ी जात है ।। आवहु आवहु सब मिलके, मा मा रटैं। मनको मिटै मलाल सोक सङ्कट कटें ।। नाहिन विद्या धन नाहिन गुन रूप । विधि कर्महि लिख राखी दुग्वकै धूप ।। तासों आवहु हिलमिल, मापै जाहिं रे। [ ६०० ]