पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६१५

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गुप्त-निवन्धावली स्फुट-कविता (२) केते सहे दैत्यकै दुख हो माय ! रोयो रैन दिवस तोकहं गोहराय । नैननसों नित लागि रही,अविरल झडी। कीने बहुत उपाय कट, ज्यों दुख घड़ी। खान पान अरु ज्ञान सबै, बिसरायकै । दोस्यौ दरसन हेत, मात ! अकुलायकै ।। (३) आवन बेलि सिधारी हे मोर माय । इते दिवस मा कौन देश रहि छाय ? मैले दुःख अपार कहे नहिं जात री। नन भये जलहीन, झुराने गात री ।। बहुत दिवस पं आज, खुले हैं भाग री। करहु प्रतिज्ञा अब ना, जैहो त्याग री ।। (४) तेरे निकट रहे बिन हे मोर माय । असुरनके डर निकस निकस जिउजाय । भिक्षा असन मलीन बसन, सब गात हैं। पेट भरन हित द्वार द्वार, बिडरात हैं ।। जो कछु जोरहिं भीख मात दुख पाय के। तुरत लेत हैं लूट असुर, तेहि आय के। हे करुना-करनी चितवहु एकबार । तव बिछुरे का दुर्गति भई हमार ।। दुर्गतिहारिनि माय ! बेगि दुर्ग ति हरो [ ५९८ ]