पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५९३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना सन १८६४ ईस्वीमें लन्दनमें छपा। एक कोष प्लेटने लिखा था ! पीछे डाकर फालेनने उद्देके कई कोष लिखे। उनकी हिन्दुस्थानी अंगरेजी डिक्शनरी सबसे भली है। यहां तक कि पीछे उर्दू जाननेवालोंने भी जो कोष लिखे हैं, उनमें डाक्टर फालेनके ढङ्गपर ही चले हैं। ___मौलवी अब्दुलहककी भूमिकासे तीन बातें स्पष्ट होती हैं। एक तो यह कि युरोपियन विद्वानोंने उद्देकी उन्नतिके लिये बहुत कुछ चेष्टा की, और कराई,और उद्देमें गद्य लिखनेको रीति जारी की, और उसके अधिक प्रचारके लिये उसे अंगरेजी दफ्तरों में दाखिल कराया। दूसरी बात यह है कि उर्दू गद्यकी नीव कलकत्तेके फोर्ट विलियममें पड़ी और इसी प्रकार हिन्दी गद्यकी प्रधान और पहली पुस्तक प्रेमसागर भी कलकत्तमें ही बनी। हिन्दीके लिये भो अंगरेजोंने कुछ चेष्टा की थी और लल्लू- लालजीसे कई पुस्तक लिखवाई थीं। पर अंगरेजी दफ्तरोंमें वह न जा सकी, इसी कारण उस समय उसकी वैसी उन्नति न हो सकी जैसी उर्दूकी हुई। इस समय हिन्दीने जो कुछ उन्नति की है, आपहीकी है। किसीकी सहायता इसे कुछ भी न मिली। युक्तप्रदेशमें इसे केवल इतनी सहायता मिली थी कि यह भी उर्दृके साथ किसी-किसी मौकेपर सरकारी दफ्तरों में रहे। उतनेहीमें मुसलमान बिखर गये। इससे स्पष्ट है कि आगे भी हिन्दी जो कुछ करेगी स्वयं करेगी। किसीकी सहायता-वहायता इसे न मिलेगी। इस पुस्तक गुलशनेहिन्दके विषयमें हमें और लिखना पड़ेगा। क्योंकि अभी उसको भूमिकाकी बात भी पूरी नहीं हुई है। यहां केवल इतना ही कहना है कि जो हिन्दीके प्रेमी उर्दू पढ़ सकते हैं, वह इसकी एक-एक प्रति जरूर खरीद लें, इससे उन्हें हिन्दीका १०० वर्ष पहलेका इतिहास जाननेमें खूब सहायता मिलेगी। यह १।। में अब्दुलहखां साहब, कुतुबखाना आसफिया, हैदराबाद-दक्षिणसे मिलती है। __-भारतमित्र, सन् १९०७ ई० । [ ५७६ ]