पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५४९

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गुप्त-निबन्धावली आलोचना-अत्यालोचना कहां 'व' लिखना चाहिये, यह बात तो व्याकरण बतावेगा नहीं। बहुतसी भूलें लोग अभ्यास दोषसे करते हैं, बहुतसी कम्पोजिटरों और प्रूफ देखनेवालोंके हाथोंसे होती हैं। द्विवेदीजी इन सबको एकही श्रेणीमें लेते हैं। इससे व्याकरणका क्या सम्बन्ध है ? ___ फरवरीकी 'सरस्वती'में आत्मारामकी बातपर नाराज होकर आप हरिश्चन्द्रजीके मुद्राराक्षस नाटककी भूलें दिखाते हैं। उनमें नवीं और दसवीं भूल इस प्रकार है- (e) "दुढि पण्डित लिखते हैं कि सर्वार्थसिद्धि नन्दोंमें मुख्य था। इसको दो स्त्री था। (१०) एक दिन राजा दोनों रानियोंके साथ एक अषिके यहां गया।" आपने पहले वाक्यमें “दो स्त्री” और दूसरेमें “दोनों रानियों" पर एतराज किया। आपका एतराज सुनिये-"नवं वाक्यमें “दो" के लिये 'स्त्री' एक वचन, पर दसवे वाक्यमें दोनों के लिये 'रानियों' बहुवचन !" ___ मईकी 'सरस्वती' हमारे सामने है । इसके पहले पृष्ठके पहले कालममें ही द्विवेदीजी लिखते हैं- (१) "पृथ्वीके पेटसे उनकी हड़ियोंको खोदकर उन्होंने उनकी ठठरी अजायब घरोंमें रख दी है।" (२) “शरीर-शास्त्रके सिद्धान्तोंकी सहायतासे उन्होंने उन ठठरियोंसे उन पुरातन प्राणियोंके विषयमें सैकड़ों अद्भुत बात जान ली हैं।" पहले 'ठठरी' फिर 'ठठरियों' भाषा और व्याकरणके इतने बड़े दावेदार होनेपर भी द्विवेदीजी अभ्यास दोषसे भूल गये हैं। कोई नया व्याकरण उनका यह अभ्यास छुड़वा नहीं सकता। जिस अभ्यास बश हरिश्चन्द्र आदि इस प्रकार लिख जाते थे, वह अब भी एकदम दूर नहीं हो गया है। द्विवेदीजी जरा ध्यान करते तो देखते कि 'ठठरी' 'अजायब [ ५३२ ]