पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५२९

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गुप्त-निबन्धावली मालोचना-प्रत्यालो आंखोंमें काँटेसी खटकेगी ? बेहतर हो कि चुभतीका हम वह अर्थ जो शहरवालोंके रोजमर्रहमें आता है। शहरवाले अपनी बहुत पस की प्यारी चीजको चुभती हुई कहते हैं। ___द्विवेदीजीको शिकायत है कि ६ मालसे हम उनके साथ अदावत बर्ताव करते हैं। पर हम इसको नहीं मानते। इसके लिये हम अप सफाई पेश करगे। ६ साल नहीं, आपका हमारा मोलह-सतरह साल सम्बन्ध है। सन १८८६ ई० में जब हम कालेकांकरमें थे, तब हर द्विवेदीजीको पहले-पहल जाना। आपने अपना गङ्गालहरीका हिन्द अनुवाद "हिन्दोस्थान” में छपनेको भेजा था। तब हमने अनुम किया था कि आप एक संस्कृत जाननेवाले पण्डितोंमेंसे हैं। . अनुवाद कुछ दिन छपा। इसे देवकर एक और मजनने गङ्गालहरीह का अनुवाद भेजना आरम्भ किया। वह भी “हिन्दोस्थान" में छा लगा। इससे द्विवेदीजी नाराज हुए। आपने लिखा कि जबतक मे अनुवाद छपता है, दूसरेका न छपे। हमने दूसरे सजनको रोका, वह बिगड़ गये। कहने लगे द्विवेदीजीका अनुवाद बड़ा अनोखा है, ' उसके सामने दूसरेका न छपे। जरा पूछिये तो सही, उन्हींका किया भी कि नहीं। फल यह हुआ कि दोनों अनुवाद ही छपनेसे बंद गये। जब द्विवेदीजीने अपना अनुवाद पुस्तकाकार छपवाया, र खरीदकर पढ़ा । उत्तम हुआ था। उन दिनोंमें आपने शायद 'ऋतुसंहा का अनुवाद छपवाया था। उसमें से यह टुकड़ा याद रह गया है- “आयो कृतान्त इव निदाघ काला।" व्रज भाषामें द्विवेदीजीकी गंगालहरी ही देखी, बाकी कविताएं उन "निदाघ काला" के ढंगकी होती रहीं। “हिन्दोस्थान” में हमें जहांत याद है, हमारे सामने उनका कोई गद्य लेख नहीं छपा था। ब्रज भाषा [ ५१२